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अर्थिंग क्या होती है अर्थिंग क्यों आवश्यक है अर्थिंग कैसे करे

अर्थिंग क्या होती है अर्थिंग क्यों आवश्यक है अर्थिंग कैसे करे

Electric earthing In Hindi : जब किसी ताँबे या जी. आई. (GI) की तार या प्लेट को जमीन में 2.5 से 3.0 मीटर तक की गहराई में दबाया जाए तो इसे अर्थिग कहा जाता है। ताँबे या जी. आई. की तार या प्लेट को इलैक्ट्रोड (Electrode) कहा जाता है। जब किसी धातु की मशीन, उपकरण या कोई अन्य वस्तु जिसमें से करंट प्रवाहित हो रहा हो उसे तार (इलैक्ट्रोड़) के द्वारा जमीन (पृथ्वी) से जोड़ दें तो इस क्रिया को अर्थिग कहते हैं। जमीन का पोटैशियल (Potential) सदैव शून्य लिया जाता है। जब कोई धातु की मशीन या अन्य वस्तु को इलैक्ट्रोड़ के साथ जोड़ा जाता है तो उसका पोटैशियल भी शुन्य हो जाता है।

जब किसी विद्युत मशीन, उपकरण आदि में शॉर्ट-सर्किट, इंसुलेशन खराब होने, या वाईडिंग में लीकज क कारण करंट मशीन के ऊपरी सतह या भाग में से प्रवाहित होता है, ऐसे समय में यदि कोई व्यक्ति उस मशीन के स्पर्श में आता है तो उसे झटका (Shock) लगता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। यदि उस मशीन को अर्थ किया गया है तो पृथ्वी का पोटैशियल शून्य होने के कारण उक्त मशीन का पोटैशियल भी शून्य हो जाता है जिस कारण से मनुष्य को कोई झटका या हानि नहीं होती।

अर्थिंग क्यों आवश्यक है

1. जीवन का बचाव : -किसी वैद्युतिक उपकरण की धात्विक बॉडी का सम्बन्ध विद्युत से हो जाता है या मशीनों की वाइंडिंग या वायरिंग में लीकेज पैदा हो जाती है अथवा इन्सुलेशन खराब होने से उसके ऊपरी भाग में विद्युत आ जाती हैं तो स्पर्श करने मात्र से जीवन समाप्त हो सकता है। यदि वहाँ ‘अर्थ’ का सम्बन्ध उस उपकरण या मशीन से कर दिया जाए तो स्पर्श करने वाले व्यक्ति को कोई हानि नहीं हो पाती है।

2. लाइन के वोल्टेज को स्थिर रखने के लिए ‘अर्थिग’ किया जाता है। प्रत्येक आल्टरनेटर और ट्रान्सफार्मर के न्यूट्रल को ‘अर्थ’ किया जाता है।

3. बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को आसमानी विद्युत से बचाने के लिएतड़ित चालक (Lightening arrester) प्रयोग किए जाते हैं जिससे आसमानी विद्युत अर्थ हो जाती है।

4. ओवरहैड लाइन से लगी वैद्युतिक मशीनों आदि को आसमानी विद्युत से बचाने के लिए ‘अर्थिंग’ की जाती है।

5. टेलीग्राफी में ‘अर्थ’ को रिटर्न वायर के रूप में प्रयोग किया जाता है।

अर्थिग न करने के नुकसान

1.मशीन या उपकरण में लीकेज करंट होने पर उसके संपर्क में आए व्यक्ति को झटका (Shock) लगता है या उसकी मृत्यु हो भी हो सकती है।

2.ऊँची-ऊँची इमारतों तथा भवनों की अर्थिग न होने से हानि हो सकती है।

3. यदि अल्टेनेटर और ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल को अर्थ न किया जाए तो अस्थिर वोल्टेज प्राप्त होगी जिससे मशीन या उपकरण को हानि हो सकती है।

अर्थिंग कैसे करते है

अर्थिंग करने के लिए हम नीचे दी गयी विधियों में से किसी एक विधि द्वारा अर्थिंग कर सकते है .

1. प्लेट के द्वारा ‘अर्थ’ करना
2. पाइप के द्वारा ‘अर्थ’ करना
3. रॉड के द्वारा ‘अर्थ’ करना
4. पानी के नल के साथ ‘अर्थ’ करना

प्लेट अर्थिग

प्लेट अर्थिग भारतीय विद्युत नियमानुसार बड़ी इमारत या सब-स्टेशन को अर्थ करने के लिए ठीक समझी जाती है। प्लेट अर्थिग उस स्थान पर अधिक प्रयोग में लाई जाती है जहाँ पर नमी अधिक होती है।

प्लेट अर्थिग करने के लिए निम्नलिखित समान प्रयोग में लाया जाता है।
1.अर्थिग प्लेट जी. आई. (GI.) की = 60 से. मी. x 60 से. मी. x 6.35 मि. मी.
2.या अर्थिग प्लेट ताँबे (Copper) की = 60 से. मी. x 60 से. मी. x 3.18 मि. मी.
3.अर्थिग तार ताँबे की = 10 S.W.G. या
4.अर्थिग तार जी. आई. की = 8 S.W.G
5.अर्थिग जी. आई. (G.I.) पाइप 12.7 मि.मी. व्यास (यह पाइप अर्थ की तार को ले जाने के काम आता है)।
6.जी. आई. पाइप 19.5 मिमी. (इस जी. आई. पाइप का प्रयोग अर्थिग प्लेट के चारों ओर पानी डालने के लिए किया जाता है।
7.नमक और लकड़ी के कोयले का मिश्रण (नमी के लिए)।
8.फनल (Funnel)- इसका प्रययोग ऊपर से पानी डालने के लिए किया जाता है।
9.नट तथा बोल्ट: 50 मिमी. x 8 मिमी. (ताँबे को प्लेट के साथ ताँबे के नट-बोल्ट तथा जी. आई. की प्लेट के साथ जी. आई. के नट-बोल्ट प्रयोग किए जाते हैं)।
10.कास्ट आयरन कवरः 30 से.मी. X 30 से.मी. (ऊपर से ढकने के लिए)

उपरोक्त सामान को एकत्रित करके जमीन में लगभग 3 मीटर गहरा गढ्ढे खोदा जाता है फिर इस गढ्ढे में ताँबे या जी. आई. की प्लेट को वर्टीकली स्थिति में दबा दिया जाता है। प्लेट को जोड़ने के लिए ताँबे या जी. आई. तार का प्रयोग किया जाता है। फिर प्लेट के चारों ओर 150 मि.मी. मोटी नमक व लकड़ी के कोयले का मिश्रण भर दिया जाता है। जिस कारण से प्लेट के चारों ओर नमी बनी रहती है तथा अर्थ का रजिस्टेंस भी कम रहता है। अर्थ की तार को 12.7 मि.मी. व्यास के जी. आई. पाइप में डालकर ऊपर तक लाया जाता है इस पाइप के साथ-साथ एक 19 मि.मी. व्यास वाली पाइप भी लगाई जाती है इस पाइप के ऊपर एक फनल (Funnel) लगाया जाता है। जिसके द्वारा आवश्यकता पड़पर पानी डाला जाता है। इसे कास्ट आयरन के कवर से ढक दिया जाता है। प्लेट अर्थिग का अवगुण यह है कि यदि जमीन के अंदर तार टूट जाए या प्लेट से खुल जाए तो उसे खुदाई करके ही ठीक किया जा सकता है जिसमें कठिनाई आती है.

पाइप अर्थिंग

इस में प्लेट प्रयोग नहीं की जाती है। केवल पाइप जो कास्ट आयरन का बना होता है और जिसका व्यास लगभग 30 से 75 मिमी. और लम्बाई 2.5 से 3 मीटर होती है, भूमि में गड्ढा खोदकर दबा दिया जाता है जिसके चारों ओर नमक वे कोयला ऊपर तक भर दिया जाता है। इस पाइप के चारों ओर बहुत से छेद कर दिए जाते हैं जिससे पाइप के अन्दर तक नमी बनी रहे। ऊपर एक क्लैम्प द्वारा ‘अर्थ’ तार लगा दिया जाता है। तार क्लैम्प से मजबूती से बाँधा जाता है। पाइप ‘अर्थ’ होने के कारण प्लेट विधि में तार प्लेट से टूट जाने का भय रहता है जो इसमें नहीं है।

यदि किसी इन्साटालेशन का अर्थ ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहा है तो यह माना जाता है कि उसका रजिस्टेंस बढ़ गया है, जिसे पानी या नमक व लकड़ी के कोयले के मिश्रण को डालकर कम किया जाता है। या फिर अर्थ तार की जुड़े होने की पुष्टि की जाती है।

रॉड अर्थिंग

ताँबे या जस्ते की ठोस रॉड (rod) को भूमि के अन्दर दबाया जाता हैं। लम्बी और 12-20 मिमी. व्यास की कई रॉड होती हैं। एक रॉड नीचे से नुकीली होती है। उसी रॉड को हथौड़े से ठोंक कर गाड़ा जाता है। एक रॉड के लगने के बाद उसके ऊपर अन्य रॉड, सॉकिट के द्वारा लगाकर गाड़ दी जाती है। इस प्रकार रॉड की की लम्बाई भूमि के अन्दर चली जाती है। यह रॉड जितनी गहराई तक होगी उतना ही ‘अर्थ’ रेसिस्टेन्स कम होगा। यह अधिक गहराई तक लगाए जाने के कारण इसमें नमक व कोयला भी प्रयोग नहीं किया जाता है। यह विधि सस्ती और कम समय में लगाई जाने वाली होती है। इसके ऊपर से ही ‘अर्थ’ तार क्लैम्प द्वारा बाँधा जाता है। चट्टानी भूमि में यह विधि प्रयोग नहीं की जा सकती है।

पानी के नल द्वारा अर्थिंग

हैन्ड पम्प का पाइप भूमि में की गहराई तक गड़ा होता है। और उसमें प्रत्येक समय नमी बनी रहती है। इस कारण यह भी ‘अर्थ’ का कार्य बहुत अच्छा करता है। पाइप के ऊपर अर्थिंग तार को कस कर बाँध दिया जाता है या सोल्डर कर दिया जाता है। तार के ढीले (loose) रहने से पाइप और पानी में करन्ट का शॉक (shock) लग सकता है।

अर्थिंग कैसे चेक करे

अर्थिंग चेक करने के लिए अर्थिंग का प्रतिरोध मापा जाता है . प्रतिरोध को मापने के लिए अर्थ टैस्टर नामक यंत्र का प्रययोग किया जाता है। यह मैगर (Megger) की भाँति ही होता है। अर्थ टैस्टर (Earth Tester) के तीन टर्मीनल P, C तथा E होते हैं। टर्मीनल E को अर्थ के साथ जिसे टैस्ट करना है जोड़ते हैं तथा P और C टर्मीनल को लोहे की छड़ों (इलैक्ट्रोड) से जोड़ दिया जाता है.

E टर्मीनल से P टर्मीनल की दूरी 25 मीटर तथा E टर्मीनल से C टर्मीनल की दूरी जमीन में 50 मीटर रखी जाती है। जब अर्थ टैस्टर के हैंडल को घुमाते हैं तो अर्थ का प्रतिरोध बदलता है इसकी रीडिंग ओह्म से 3 ओह्म के बीच में होनी चाहिए।

अर्थिंग करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए

1.घर, भवन या इमारत की बाहरी दिवार से 1.5 मीटर की दूरी पर अर्थिग करनी चाहिए।
2.घरेलू वायरिंग को भी अर्थ करना आवश्यक है जिसे 14 S.W.G के GI. तार या 16 S.W.G ताँबे की तार से करनी चाहिए।
3.अर्थ की तार तथा अर्थ इलैक्ट्रोड़ एक समान धातु के होने चाहिए।
4.सभी धातु से बने बोर्ड स्विच स्टार्टर रिले आदि को अर्थ करना चाहिए।
5.अर्थ का रजिस्टैंस एक 12 से अधिक नहीं होना चाहिए। तथा किसी भी हालात में साधारण अर्थिग में रजिस्टेंस 52 तथा पहाड़ वाले क्षेत्र में 82 से अधिक नहीं होने चाहिए।
6.तीन फेज वाली सभी मशीनों को डबल अर्थ करना आवश्यक है तथा दोनों इलैक्ट्रोड़ों को बीच की दूरी 5 मीटर होनी चाहिए।
7.बड़ी इन्सटालेशनों में अर्थ की तार का साइज़ 0.25 sq.inch. से कम नहीं होनी चाहिए।
8.यांत्रिक हानि से बचाने के लिए अर्थ तार को जी. आई. पाइप के द्वारा 3 मीटर तक भूमि में जोड़ना चाहिए।
9.अच्छी अर्थिग के लिए इलैक्ट्रोड के चारों ओर नमक तथा लकड़ी के कोयले का मिश्रण डालना चाहिए।
10.अर्थ इलैक्ट्रोड़ के लिए किया गया गड्ढ़ा वर्टीकली (Vertically) होना चाहिए।
11.अर्थ तार या प्लेट को बोल्ट तथा थिंबलों के साथ जोड़ना चाहिए।
12.अर्थ तार या प्लेट को जोड़ने वाले बोल्ट तथा थिंबल उसी धातु के होने चाहिए जिस धातु के अर्थ तार या प्लेट हों।

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