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कंप्यूटर का परिचय और विकास

कंप्यूटर का परिचय और विकास

जब मनुष्य पर्सनल कम्प्यूटर या माइक्रो कम्प्यूटर की बात करते हैं तब इनका अभिप्राय छोटे आकार के कम्प्यूटर्स से होता है। जिनको दफ्तरों में, क्लास रूम में, घरों में सुविधापूर्वक इस्तेमाल किया जा सके। माइक्रो कम्प्यूटर्स विभिन्न प्रकार के होते हैं।

पर्सनल कम्प्यूटर (PC)-पर्सनल कम्प्यूटर और माइक्रो कम्प्यूटर दोनों आपस में विनिमयशील अर्थात परस्पर बदलने योग्य हैं। परन्तु पी.सी. का महत्व अधिक प्रभावशाली है। यहाँ पी.सी. के बारे में बताना लाभदायक हैं। सन 1981 में IBM कम्पनी ने अपना पहला माइक्रो कम्प्यूटर बनाया और उसका नाम रखा IBM-PC, इसको बेहद सफलता मिली। इसकी सफलता के कारण बहुत सारी कम्पनियों ने इसकी नकल करनी शुरू की, और ऐसे कम्प्यूटर बनाये जो IBMPC जैसे ही थे तथा उनके कम्पेटेबल भी थे। अत: नाम पी.सी. उन IBM और उनके कम्पेटेबल कम्प्यूटर्स के लिए प्रचलित हो गया। अधिकांश मार्किट में बिकने वाले कम्प्यूटर IBM सीरीज के हैं। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर मार्किट में आये जो आई.बी.एम. से बिल्कुल भिन्न है। उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण इसकी तेजी से विकसित हुई तकनीकी है। इसके माइक्रो प्रोसेसर, स्टोरेज डिवाइस तथा मेमॅरि चिप्स तेज और बड़े होते चले गये।

कम्प्यूटर का इतिहास

तकनीकी के इस युग में हर आदमी किसी-न-किसी रूप में कम्प्यूटर से जुड़ा है और उसका इस्तेमाल कर रहा है। कम्प्यूटर अचानक जादूगरी से अस्तित्व में नहीं आया। इसका विकास लगभग 3000 वर्ष से भी पहले आरम्भ हुआ और उसके बाद धीरे-धीरे इस रूप में आया और इसका विकास लगातार आज भी हो रहा है। अब आपको महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताते हैं जिनका कम्प्यूटर के विकास में योगदान रहा।

अबाकस

कम्प्यूटर की खोज का इतिहास खोजने पर सबका लगभग एक ही मत है कि सर्वप्रथम इसका आरम्भ सोलहवीं शताब्दी में चीन में हुआ जहाँ के शिक्षाविदों ने गणना करने के लिए अबाकस (Abacus) नामक यन्त्र बनाया था। यह यन्त्र लकड़ी के एक आयताकार फ्रेम में होता है। जिसको दो भागों में बाँटा जाता है, एक का आकार छोटा और दूसरे का बड़ा। इस फ्रेम में कई समान्तर बीड्स लगे होते हैं, जिसमें मोती पिरोए जाते हैं। इससे छोटे बच्चों को गिनती सिखाने का काम किया जाता है।

चार्ल्स बैबेज की मशीन

इसमें बाद में लगातार प्रयोग होते रहे और उसके परिणामस्वरूप आई एक अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज की नई मशीन। इस मशीन का बैबेज ने 1833 में व्यावसायिक उत्पादन प्रारम्भ किया और इसका नाम दिया-अद्वितीय। “The Babbage difference engine”.
इस मशीन से बीजगणितीय समीकरणों का दशमलव के तीसरे स्थान तक सही मान निकाला जा सकता था। “चार्ल्स बैबेज के इस अद्वितीय योगदान के कारण ही वैज्ञानिकों ने उन्हें कम्प्यूटर का जनक कहा।”
Eniac और Edvac तक का विकास-इसके बाद कम्प्यूटर के क्षेत्र में लगातार विकास होता रहा। 1879 में होरीरेथ नामक वैज्ञानिक ने एक मशीन बनाई जिसको Ceusus Tabulator का नाम दिया गया। मशीन में पंच कार्ड्स का प्रयोग किया जाता था। यह मशीन बिजली से चलती थी।

पहला आधुनिक कम्प्यूटर डिजाईन

पहला आधुनिक कम्प्यूटर का डिजाईन सन 1801 में अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैवेज ने तैयार किया और उसका नाम दिया Difference engine बाद में 1883 में उन्होंने एक और मशीन तैयार की और उसका नाम रखा गया Analytic Engine इस मशीन में पंच कार्डस का प्रयोग हुआ जिसमें ऑपरेटर की आवश्यकता अनुसार इनपुट के रूप में डाटा दिये जाते थे।

पहला इलैक्ट्रोनिक कम्प्यूटर

पहले इलैक्ट्रोन कम्प्यूटर का विकास Dr. John Mauhy और उनके शिष्य J. Presper Eckert ने U.S.A. के Pennsylvania विश्वविद्यालय में 1946 में US की फौज में किया। इसमें 6000 स्विच लगे थे जो जमा-घटा और 350 गुणा और 50 भाग एक सेकेंड में कर सकते थे। यह पहले की मशीनों से हजारों गुणा तेज थी। इसका नाम ENIAC (Electronic Numeric Integrator and Calculator) रखा गया। यह आकार में बहुत बड़ा था।

प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर

इस युग का प्रारम्भ 1951 से माना जाता है। इस समय तक सरकारी अमेरिकन संस्था द्वारा UNIVAC-1 नामक कम्प्यूटर खरीदा गया। यह मशीन ENIAC वाले कम्प्यूटर से आधुनिक और शक्तिशाली थी। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर में वाल्व अर्थात वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल होता था।

द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर्स

इसका कार्यकाल 1964 तक माना जाता है। वास्तव में 1948 में पूरे इलैक्ट्रोनिक्स क्षेत्र में ही बेहद बदलाव आया तो कम्प्यूटर कैसे अछूता रह जाता यह बदलाव आया ट्रांजिस्टर के विकास से। तीन वैज्ञानिक John Bardeen, Walter Brattian और William Shockly अमेरिकन BEL प्रयोगशाला में ठोस पदार्थों की विशेषताओं का अध्ययन कर रहे थे। तब सबसे पहले यह पता लगाया गया कि ठोस पदार्थ में भी एम्पलीफिकेशन सम्भव है। इससे पहले एम्पलीफिकेशन केवल वैक्यूम ट्यूबों में हो सकता था। ट्रांजिस्टर सन 1948 में अस्तित्व में आया और इस आविष्कार ने इलैक्ट्रोनिक के संसार में क्रान्ति ला दी। इस आविष्कार के लिए इन तीनों वैज्ञानिकों को नोबल पारतोषिक से नवाजा गया। हालाँकि ट्रांजिस्टर 50 साल से थोड़ा ही पहले अस्तित्व में आया मगर निम्न कारणों से इसने लगभग सभी पुराने इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को बदल डाला।

तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर

सन 1964 से 1970 के समय को कम्प्यूटर की तीसरी पीढ़ी का समय कहते हैं। इस समय दो दिशाओं में महत्वपूर्ण विकास हुआ। एक सूक्ष्म परिपथ अर्थात् Integrated Circuit (IC) का बनना और दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों के विकास में आई.बी.एम. ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैसे द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर में क्रांति ट्रांजिस्टर लेकर आया तृतीय पीढ़ी में उससे भी अधिक भूमिका रही IC की। सन 1958 में टेक्साज इन्स्ट्रमेंट कम्पनी के वैज्ञानिक जे.एस. क्लिवी ने IC बनाया और उसके बाद इस तकनीकी में लगातार विकास होता गया। सूक्ष्म परिपथ तो बहुत है परन्तु उनमें से सबसे पहले अधिक प्रयोग Integrated Circuit ही किये जाते हैं इसको अधिकतर IC कहते हैं।

चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर्स

सन 1970 से 1985 के मध्य में विकसित हुए कम्प्यूटर इस पीढ़ी में आते हैं। जैसे तालिका 1 में दिखाया है IC का विकास होता गया और वह VLSI और ULSI तक पहुँच गया। VLSI के विकास से यह मुमकिन हो पाया कि सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट का निर्माण एक चिप पर हो गया। इसका लघु आकार होने के कारण इस चिप को माइक्रोप्रोसेसर और यह जिस कम्प्यूटर में लगाया गया उसका नाम पड़ा माइक्रोकम्प्यूटर।

पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर

सन 1985 से वर्तमान समय में हम पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर पर काम कर रहे हैं। यह तो स्पष्ट है कि यह कम्प्यूटर शक्तिशाली तथा आधुनिक है। पहले की तुलना में इसी पीढ़ी में सुपर कम्प्यूटर का विकास सम्भव हो सका है। अब के समय में सॉफ्टवेयर में भी बहुत परिवर्तन आये और कृत्रिम ज्ञान क्षमता वाले सॉफ्टवेयरों का विकास हुआ। नए-नए ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किए गये। एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर में भी विंडोज का प्रचलन हुआ जैसे विंडो 95, 98, एक्स. पी. आदि । इस पीढ़ी के कम्प्यूटर्स के आकार बहुत घट गये तथा इनमें हम अपनी जरूरत अनुसार मेमॅरि कम ज्यादा भी कर सकते हैं। डेटा स्टोर करने की समस्या के समाधान के लिए स्कैजी हार्ड डिस्क का विकास भी इस समय ही हुआ।

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