प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ हैं
प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ हैं
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास ने संसाधनों की माँग में अत्यधिक तेजी ला दी है। यह बात नीचे दिए गए विवरण से स्पष्ट हो जाएगी:
(क) प्रौदयोगिक विकास: मानव ने आज हर क्षेत्र में नई-नई तकनीकें खोज निकाली हैं। इनके फलस्वरूप उत्पादन की गति बढ़ गई है।
आज उपभोग की प्रत्येक वस्तु का उत्पादन व्यापक स्तर पर होने लगा है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वस्तुओं की माँग भी बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त उपभोग की प्रकृति भी बदल गई है। आज प्रत्येक उपभोक्ता पहली वस्तु को त्याग कर उसके स्थान पर उच्च कोटि की वस्तु का उपयोग करना चाहता है। इन सबके लिए अधिक-से-अधिक कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। परिणामस्वरूप हमारे संसाधनों पर बोझ बढ़ गया है।
(ख) आर्थिक विकास: आज संसार में आर्थिक विकास की होड़ लगी हुई है। विकासशील राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में जुटे हैं। इसके लिए वे अपने उद्योगों का विस्तार कर रहे हैं तथा परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसका सीधा संबंध संसाधनों के उपभोग से ही है। दूसरी ओर विकसित राष्ट्र अपने आर्थिक विकास से प्राप्त धन-दौलत में और अधिक वृद्धि करना चाहते हैं। यह वृद्धि संसाधनों के उपभोग से ही संभव है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका संसार के औसत से पाँच गुना अधिक पेट्रोलियम का उपयोग करता है। अन्य विकसित देश भी पीछे नहीं हैं। सच तो यह है कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास अधिक-से-अधिक संसाधनों के उपभोग की जननी है।
संसाधन एवं विकास से संबंधित प्रश्न उत्तर
उत्तर – हमारे पर्यावरण में पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु जो हमारी ज़रूरतों को पूरा कर सकती है, संसाधन कहलाती है।
उत्तर – बहुत से लोगों का विचार है कि संसाधन प्रकृति के मुफ़्त (नि:शुल्क) उपहार होते हैं, परंतु ऐसा नहीं है । सभी संसाधन मनुष्य के क्रियाकलापों का प्रतिफल होते हैं। मनुष्य ही प्रकृति में उपलब्ध पदार्थों को संसाधनों में बदलता है। इस दृष्टि से मनुष्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है।
अथवा
संसाधनों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर – संसाधनों का वर्गीकरण निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है:
(क) उत्पत्ति के आधार पर: जैविक तथा अजैविक।
(ख) समाप्ति अथवा समाप्यता के आधार पर: नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय।
(ग) स्वामित्व के आधार पर: व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय।
(घ) विकास की अवस्था के आधार पर: संभावी, विकसित, भंडार और संचित कोष।
उत्तर – संभावी संसाधन वे संसाधन हैं जिनकी खोज तो हो चुकी है, परंतु उनका उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए राजस्थान और गुजरात में पवन ऊर्जा तथा सौर ऊर्जा के विकास की अत्यधिक क्षमता है।
उत्तर – विकसित संसाधन वे संसाधन हैं जिनका सर्वेक्षण हो चुका है और उपयोग के लिए इनकी मात्रा भी भली-भांति निर्धारित कर ली गई है।
उत्तर – स्टॉक से अभिप्राय उन संसाधनों से है जो मानव की ज़रूरतें तो पूरी कर सकते हैं परंतु मनुष्य के पास इनके विकास के लिए उचित तकनीक का अभाव है।
उत्तर – सतत पोषणीय आर्थिक विकास से अभिप्राय ऐसे विकास से है जिससे पर्यावरण को क्षति न पहुँचे। इसके अतिरिक्त संसाधनों का उपयोग इस प्रकार हो कि हमारी आवश्यकताओं के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों को भी उनसे लाभ पहुँचे।
उत्तर – संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने की प्रक्रिया को संसाधन नियोजन (योजना) कहते हैं।
उत्तर – संसाधनों को उपयोगी बनाने की प्रक्रिया को संसाधनों का विकास कहा जाता है।
उत्तर – संसाधनों के अविवेकपूर्ण तथा अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न समस्याओं से निपटने के लिए।
उत्तर – भूमि संसाधन मानव-जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, वन्य-जीवन, आर्थिक गतिविधियों तथा परिवहन एवं संचार प्रणाली को आश्रय देते हैं।
उत्तर – परती भूमि वह भूमि है जिसे फ़सल लेने के बाद इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह फिर से अपनी उर्वरा शक्ति प्राप्त कर ले।
उत्तर – मनुष्य को प्रकृति से मिलने वाले उपहार ‘प्राकृतिक संसाधन’ कहलाते हैं। इनमें भूमि, जल, वनस्पति और खनिज आदि शामिल हैं।
उत्तर संसाधन दो प्रकार के हैं-प्राकृतिक संसाधन तथा मानव निर्मित संसाधन।
उत्तर – मानव निर्मित संसाधन हैं-इमारतें, सड़कें, रेलवे, गाँव इत्यादि।
अथवा
भूमि का उपयोग किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर – भूमि का उपयोग निम्नलिखित दो प्रकार के कारकों पर निर्भर करता है-भौतिक कारक तथा मानवीय कारक।
(क) भौतिक कारक-इन कारकों में उच्चावच, जलवायु तथा मृदा के प्रकार शामिल हैं।
(ख) मानवीय कारक-इन कारकों में जनसंख्या घनत्व, तकनीकी कौशल तथा सांस्कृतिक परंपराएँ आदि शामिल हैं।
उत्तर – (क) कुछ भूमियाँ कम उपजाऊ होती हैं। (ख) इन भूमियों पर कृषि की लागत बहुत अधिक है।
उत्तर – वर्ष 1952 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश का 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए। परंतु भारत में वन क्षेत्र 22 प्रतिशत
(2011) ही है।
उत्तर – मृदा के निर्माण में धरातल, मूल शैल की प्रकृति, जलवायु तथा समय की अवधि आदि कारक शामिल हैं। मृदा निर्माण की प्रक्रिया में रासायनिक तथा जैविक परिवर्तन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर – जलवायु तथा वनस्पति में भिन्नता के कारण भारत की मिट्टियों में विभिन्न प्रकार के भौतिक लक्षण तथा स्थल रूप पाए जाते हैं।
उत्तर – विकसित तकनीक होने के कारण।
उत्तर – (क) अति चराई द्वारा। (ख) वनों के विनाश द्वारा ।
उत्तर – (क) मृदा अपरदन को रोका जाए। (ख) मरुस्थलों के विकास पर रोक लगाई जाए।
उत्तर – जलवायु, पेड़-पौधे तथा प्राणी आदि कारक चट्टानों को तोड़-फोड़ कर महीन (बारीक) तथा समृद्ध बनाते हैं। इस प्रकार मृदा का निर्माण होता है।
उत्तर – तेज़ वायु तथा जल मृदा की ऊपरी सतह को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं। इसे मृदा अपरदन अथवा मिट्टी का कटाव कहते हैं।