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वायुमंडल की संरचना, संघटन, प्रमुख 5 परतें एवं मुख्य गैसों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी

वायुमंडल की संरचना, संघटन, प्रमुख 5 परतें एवं मुख्य गैसों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी

 आज सभी कॉम्पीटिशन एग्जाम में समान्य ज्ञान के सेक्शन में  वायुमंडल की संरचना से सबंधित बहुत से प्रश्न पूछे जाते है क्योकि वायुमंडल की संरचना से सबंधित  प्रश्न समान्य ज्ञान का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है इसलिए यदि कोई उमीदवार किसी कॉम्पीटिशन एग्जाम की तैयारी  कर रहा है तो उसे रेल मंत्रियों से सबंधित समान्य ज्ञान होना चाहिए इसलिए आज हमवायुमंडल की संरचना के बारे  में बतायेंगे यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको वायुमंडल की संरचना से सबंधित जानकारी होनी चाहिए इनमे से प्रश्न अक्सर एग्जाम में पूछे जाते है|

वायुमंडल क्या है

पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है।

वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को “शांतमंडल” और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं।

प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है।

सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप – 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं।

वायुमंडल की मुख्य गैसें:

वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण हैं। वायुमंडल में मौजूद मुख्य गैसों के नाम निम्नलिखित है:

गैस का नाम आयतन के अनुसार प्रतिशत
नाइट्रोजन 78.08
ऑक्सीजन 20.9
आर्गन 0.93
कार्बन डाईऑक्साइड 0.03
निऑन 0.0018
हीलियम 0.0005
ओज़ोन 0.00006
हाइड्रोजन 0.00005
मीथेन अल्प मात्रा
क्रिप्टन अल्प मात्रा
ज़ेनॉन अल्प मात्रा

वायुमण्डल की परतें:

वायुमण्डल का घनत्व ऊंचाई के साथ-साथ घटता जाता है। वायुमण्डल को 5 विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है।

  • क्षोभमण्डल
  • समतापमण्डल
  • मध्यमण्डल
  • तापमण्डल
  • बाह्यमण्डल

 क्षोभमण्डल

  • यह पृथ्वी की सतह के सबसे नजदीक होती है। इसकी ऊचाई विषुवत रेखा (16 किमी) से ध्रुवों (8 किमी) की ओर जाने पर घटती है। सभी मौसमी घटनाएँ इसी परत में सम्पन्न होती हैं।
  • यह अन्य सभी परतों से घनी है और यहाँ पर जलवाष्प, धूलकण, आर्द्रता आदि मिलते हैं। मौसम सम्बन्धी अधिकांष परिवर्तनों के लिए क्षोममण्डल ही उत्तरदायी है।
  • इस परत में ऊंचाई के साथ-साथ तापमान घटता है। प्रत्येक 165 मीटर पर 1°C तापमान की कमी हो जाती है। इसे सामान्य ताप हास दर कहते हैं।
  • तापहास दर केवल ऊंचाई से ही नहीं बल्कि अक्षांशों से भी प्रभावित होती है। इस नियम के अनुसार यह दर उच्च तापमान वाले धरातल के ऊपर उच्च तथा निम्न तापमान वाले धरातल के ऊपर निम्न होती है।
  • क्षोभमण्डल के ऊपर षीर्ष पर स्थित क्षोभमण्डल सीमा इसे समताप मण्डल से अलग करती है। इसको संवहन मंडल भी कहा जाता है।

समताप मण्डल:

  • इसकी ऊंचाई 50 किमी तक होती है।
  • समताप मण्डल में तापमान में ऊंचाई के साथ वष्द्धि नहीं होती है। तापमान समान रहता है।
  • यह परत वायुयान चालकों के लिए आदर्ष होती है।
  • समताप मण्डल की ऊपरी सीमा को ‘स्ट्रैटोपाज’ कहते हैं।
  • इस मण्डल में जल-वाष्प, धूलकण आदि नहीं पाये जाते हैं। इसमें बादलों का अभाव होते है।
  • इस मण्डल के निचले भाग में ओज़ोन गैस बहुतायात में पायी जाती है। इस ओज़ोन बहुल मण्डल को ओज़ोन मण्डल कहते हैं।
  • इस मण्डल में ओजोन परत होती है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अवषोषण करती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं।

 मध्य मण्डल:

  • यह 80 किमी की ऊंचाई तक होता है।
  • इसमें ऊंचाई के साथ तापमान में गिरावट होती है और 80 किमी. की ऊंचाई पर तापमान दृ100°ब् तक हो जाता है।

आयन मंडल:

  • इसे तापमंडल भी कहा जाता है।
  • इस मंडल का फ़ैलाव 50 किमी. से लेकर 400 किमी. की ऊंचाई  तक है।
  • इस मंडल में तापमान तेजी से बढ़ता है।
  • पृथ्वी से प्रेषित रेडियों तरंगें इसी मंडल में टकराकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटती है।

  बाह्य मंडल:

  • यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है।
  • इसकी बाह्य सीमा पर तापमान लगभग 5568°C तक होता है।
  • इसमें हाइड्रोजन व हीलियम गैसों की प्रधानता होती है।

वायुमंडलीय दाब किसे कहते है?

वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है। अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुमान मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाया जाता है। कम दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता है, जबकि अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर अधिक वायुमंडलीय द्रव्यमान होता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है उस स्तर के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता जाता है, इसलिए बढ़ती ऊंचाई के साथ दबाव घट जाता है। समुद्र तल से वायुमंडल के शीर्ष तक एक वर्ग इंच अनुप्रस्थ काट वाले हवा के स्तंभ का वजन 6.3 किलोग्राम होता है (और एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले वायु स्तंभ का वजन एक किलोग्राम से कुछ अधिक होता है)।

वायुदाब की पेटियाँ:

 विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब पेटी:

  • इसका विस्तार दोनों गोलार्द्ध में 0° अक्षांश से 5° अक्षांश तक है।
  • यहाँ अधिकतम सूर्यताप प्राप्त होता है, अतः वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है और उ$पर उठ जाती है। इससे यहाँ निम्न दाब उत्पन्न हो जाता है।
  • इस क्षेत्रा में वायु लगभग गतिहीन या षान्त होती है। अतः इसे शान्त कटिबन्ध भी कहते हैं।

उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी:

  • इसका विस्तार दोनों गोलाद्धों में 30° से 35° अक्षांशों तक है। अधिक तापमान रहते हुए भी यहाँ उच्च वायुदाब रहता है इसका कारण पृथ्वी दैनिक गति एवं वायु में अवकलन एवं अपसरण है।
  • भूमध्य रेखा से लगातार पवनें उठकर यहाँ एकत्रित हो जाती है एवं साथ ही उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी से भी हवाएँ एकत्रित होती है। इस कारण यहाँ वायुदाब अधिक होता है।
  • इस पेटी को अश्व अक्षांश भी कहते हैं क्योंकि प्राचीन काल के नाविकों को इस क्षेत्रा में उच्चदाब के कारण काफी कठिनाई होती थी। अतः उन्हें जलयानों का बोझ हल्का करने के लिए कुछ घोड़े समुद्र में फ़ेकने पड़ते थे।

उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी:

  • इसका विस्तार दोनों गोलाद्धों में 60° से 65° अक्षांशों तक है।
  • यहाँ तापमान कम होने के बावजूद भी दाब निम्न है क्योंकि पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण यहाँ से वायु बाहर की ओर फ़ैलकर स्थानारित हो जाती है, अतः वायुदाब कम हो जाता है।
  • इसका दूसरा कारण ध्रुवों पर अत्यधिक उच्च दाब की उपस्थिति है।

 ध्रुवीय उच्च दाब पेटी

  • अत्यधिक शीत के कारण दोनों ध्रुवों पर उच्च दाब पाया जाता है।

वायुमंडल में पाई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण गैस

नाइट्रोजन:

 नाइट्रोजन: इस गैस की प्रतिशत मात्रा सभी गैसों से अधिक हैं. नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति और प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है. इस गैस का कोई रंग, गंध या स्वाद नहीं होता. नाइट्रोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है. अगर वायुमंडल में नाइट्रोजन ना होती तो आग पर नियंत्रण रखना कठिन हो जाता. नाइट्रोजन से पेड़-पौधों में प्रोटीनों का निर्माण होता है, जो भोजन का मुख्य का अंग है. यह गैस वायुमंडल में 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है.

ऑक्सिजन

ऑक्सिजन- यह अन्य पदार्थों के साथ मिलकर जलने का कार्य करती है. ऑक्सिजन के अभाव में हम ईधन नहीं जला सकते. यह ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है. यह गैस वायुमंडल में 64 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है, पर 16 किलोमीटर से ऊपर जाकर इसकी मात्रा बहुत कम हो जाती है.

कार्बन-डाई-ऑक्साइड-

 कार्बन-डाई-ऑक्साइड- यह सबसे भारी गैस है और इस कारण यह सबसे निचली परत में मिलती है फिर भी इसका विस्तार 32 किमी की ऊंचाई तक है. यह गैस सूर्य से आने वाली विकिरण के लिए पारगम्य और पृथ्वी से परावर्तित होने वाले विकिरण के लिए अपारगम्य है.

ओजोन-

 ओजोन- यह गैस ऑक्सिजन का ही एक विशेष रूप है. यह वायुमंडल में अधिक ऊंचाइयों पर ही अति न्यून मात्रा में मिलती है. यह सूर्य से आने वाली तेज पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiations) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है. यह 10 से 50 किमी की ऊंचाई तक केंद्रित है. वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में कमी होने से सूर्य की पराबैंगनी विकरण अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुंच कर कैंसर जैसी भयानक बीमारियां फैला सकती हैं.

  •  गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्प और धूल के कण भी उपस्थित हैं.
  •  आकाश का रंग नीला धूल कण के कारण ही दिखाई देता है.
  •   जलवाष्प सूर्य से आने वाले सूर्या तप के कुछ भाग को अवशोषित कर लेता है और पृथ्वी द्वारा विकरित ऊष्मा को संजोए रखता है. इस प्रकार यह एक कंबल का काम करता है. इससे पृथ्वी ना तो अधिक गर्म और ना ही अत्यधिक ठंडी हो सकती है.
  •  वायुमंडल में जलवाष्प सबसे अधिक परिवर्तनशील और असमान वितरण वाली गैस है.

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