उत्तराखण्ड सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
उत्तराखण्ड सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
Uttarakhand GK Quiz – अगर आप किसी भी परीक्षा की तैयारी करते हैं तो उसके लिए आपको पढ़ने के लिए अच्छा स्टडी मैटेरियल होना बहुत ही जरूरी है. अगर आप के पास पढ़ने के लिए अच्छी सामग्री नहीं है तो आप किसी भी परीक्षा की तैयारी ज्यादा अच्छे से नहीं कर पाएंगे. तो इसीलिए जो उम्मीदवार Uttarakhand जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है उसके लिए इस पोस्ट में हमने GK से संबंधित काफी महत्वपूर्ण प्रशन और उत्तर दिए है जो कि पहले Uttarakhand की परीक्षाओं में पूछे जा चुके है. तो अपनी तैयारी को बेहतर बनाने के लिए इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें
उत्तराखंड के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान
राज्य गठन से पूर्व उच्च शिक्षा (Higher Education) के लिए यहां सभी श्रेणियों (Categories) के कुल 6 विश्वविद्यालय (University) तथा इससे सम्बद्ध 100 से अधिक स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय (Undergraduate and Graduate College) तथा अन्य संस्थान (Other Institutions) थे। राज्य में ज्यादातर स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय (Undergraduate and Graduate College) कुमाऊं व गढ़वाल विश्वविद्यालय (Kumaon and Garhwal University) से सम्बद्ध थे। राज्य के गठन के बाद 2012 के अंत तक उच्च शिक्षा (Higher education) के लिए सरकारी क्षेत्र(Government Sector) के 8 तथा निजी क्षेत्र (Private Sector) के 11 नये विश्वविद्यालयों (Universities) की स्थापना की गई है। इस प्रकार राज्य में सन 2012 के अंतर्गत सभी श्रेणी के विश्वविद्यालयों (Universities) की कुल संख्या 25 हो गई है। इसमें 13 विश्वविद्यालय सरकार के और 11 निजी क्षेत्र के है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (Indian Institute of Technology Roorkee)
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की देश एवं एशिया का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज है। इस संस्थान की स्थापना 1847 में हुई। 1854 में इसका नाम थॉमस कॉलेज ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग तथा स्वतंत्रता के बाद1949 में रुड़की विश्वविद्यालय कर दिया गया।
रुड़की के अलावा इसका एक परिसर सहारनपुर (पेपर तकनीकी विश्वविद्यालय) में भी है। यह भारत का पहला ऐसा संस्थान जहां भूकंप इंजीनियरिंग के लिए अलग विभाग है, जिसे 1960 में शुरू किया गया। यहाँ पर 1995 में शुरू किया गया जल संसाधन विकास प्रशिक्षण केंद्र भी भारत का अकेला केंद्र है। 1986 में स्थापित मॉडल शेकटेबल फैसिलिटी भी सिर्फ यही है।
इस कॉलेज को 1 जनवरी 2002 को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) का दर्जा प्राप्त हुआ। वर्तमान में यह देश का सातवां भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बन चुका है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय ,नैनीताल (Kumaun University, Nainital)
कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापन 1973 में की गयी ,इसके तीन परिसर नैनीताल , अल्मोड़ा तथा भीमताल में है। इस में समृद्ध 35 महाविद्यालय तथा संस्थान कुमाऊं के 6 जनपदों में फैले हुए है।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय (Hemwati Nandan Bahuguna Garhwal Central University)
गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना श्रीनगर में 1973 में हुई थी। अप्रैल, 1989 में इसका नाम परिवर्तित करहेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय कर दिया गया था। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पहले इस विश्वविद्यालय में कुल 3 परिसर श्रीनगर मुख्यालय का बिरला परिसर , पौड़ी का डा. गोपाल रेड्डी परिसर तथा टिहरी का स्वामी रामतीर्थ बादशाही थौल परिसर थे। 15 जनवरी 2009 को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद टिहरी स्थित परिसर को अलग कर दिया गया है।
वन अनुसन्धान संस्थान देहरादून (एफ. आर. आई.), देहरादून (Forest Research Institute)
वन अनुसंधान संस्थान उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है, इसकी स्थापना 1878 में ब्रिटिश इंपीरियल वन स्कूलके रूप में डाइट्रिच ब्रैंडिस द्वारा हुई थी। । 1 9 06 में, इसे ब्रिटिश शाही वन्य सेवा के तहत इंपीरियल वन रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में पुनः स्थापित किया गया था। 1 99 1 में, इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एक डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया गया था|
उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत (Major Folk Songs of Uttarakhand)
उत्तराखंड के लोक जीवन में अलग ही ताल और लय है जिसकी छाप यहां के लोकगीत एवं लोकनृत्यों में साफतौर पर परिलक्षित होती है। यहां के लोकगीत नृत्य केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि लोक जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों एवं उनसे सीख लेने की प्रेरणा भी देते हैं। हालांकि आधुनिक परिवेश के समयचक्र में पहाड़ों में बहुत सारे लोकगीत नृत्य विलुप्त हो गए हैं लेकिन बचे हुए लोकगीतों और नृत्यों की अपनी विशेष पहचान है। यहां लगभग दर्जन भर लोकगीतों की विधाएं आज भी अस्तित्व में हैं जिनमें चैती गीत चौंफला, चांछडी और झुमैलो सामूहिक रूप से किए जाने वाले गीत-नृत्य हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत
झुमैलो गीत
- झुमैलो गीत वेदना व प्रेम के प्रतीक है , Iइन गीतों में नारी हृदय की वेदना के साथ ही उसके रूप सोन्दर्य का वर्णन भी मिलता है
जागर गीत
- वे लोकगाथाऍ, जिनका संबंध पौराणिक व्यक्तियों या देवताओं से होता है, ‘जागर कहलाते है। यह किसी धार्मिक अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र , पूजा आदि के समय देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के आवाहन या सम्मान में गाए जाते है । उनके गायक को जगरिये कहा जाता है। इसको गाते समय थोडा-बहुत नृत्य भी किया जाता है।
पंवाडा या भड़ौ
- ये गीत वीरो से सम्बंधित है
खुदेड़ गीत
- ये गीत विवाहित महिलाओ द्वारा मायके की याद में गए जाते है
बाजूबंद नृत्य गीत
- खाई-जौनपुर क्षेत्र में गाये जाने वाला यह एक प्रेम नृत्य गीत है। इसे जंगल में बांज , बुरांश , काफल , चीड़ और देवदार के पेड़ो के नीचे बैठ कर गाते है। इसे दूड़ा नृत्य गीत भी कहते है
चौफला गीत
- यह एक मिलन गीत है इसमें रति , हास , मनुहार, अनुनय आदि भावो का चित्रण मिलता है
चौमासा गीत
- यह गीत वर्षा ऋतु में गाए जाते है। जिसमे अधिक वर्षा एवं प्रिय मिलन की आस रहती है। इन गीतों में विरह की भावना दृष्टिगोचर होती है।
झोड़ा गीत
कुमाऊं क्षेत्र में माघ महीने में गाया जाता हैं, यह एक प्रमुख समूह नृत्य गीत है।
चांचरी गीत
- यह कुमाऊं क्षेत्र का एक नृत्य-गीत है, इसमें स्त्री-पुरुष दोनों भाग लेते है ।
भगनौल गीत
- यह गीत स्त्री को अपने मन में कल्पना करते हुए, उसके मधुर एहसास में प्रेम द्वारा मेलों में हुडकी एवं नगाड़े के धुन पर नृत्य के साथ गाए जाते है।
बैर गीत
- कुमाऊं क्षेत्र का एक तर्क प्रधान नृत्य-गीत है । प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किए जाने वाले इस नृत्य गीत के आयोजन में दो गायक तार्किक वाद-विवाद को गीतात्मक रुप में प्रस्तुत करते है।
हुड़की बोली गीत
- यह कृषि से सम्बंधित गीत है जिसे मुख्यतः धान की रोपाई के समय गाया जाता है
उत्तराखंड के प्रमुख लोकनृत्य (Major Folk Dance of Uttarakhand)
उत्तराखण्ड की संस्कृति इस प्रदेश के मौसम और जलवायु के अनुरूप ही है। उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और इसलिए यहाँ ठण्ड बहुत होती है। इसी ठण्डी जलवायु के आसपास ही उत्तराखण्ड की संस्कृति के सभी पहलू जैसे रहन-सहन, वेशभूषा, लोक कलाएँ इत्यादि घूमते हैं
झोड़ा नृत्य
- यह कुमाऊं क्षेत्र में माघ के चांदनी रात्रि में किया जाने वाला स्त्री-पुरुषों का श्रंगारिक नृत्य है। मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुडकी बजाता नृत्य करता है। यह एक आकर्षक नृत्य है, जो गढ़वाली नृत्य चांचरी के तरह पूरी रात भर किया जाता है।
छोलिया नृत्य
- यह कुमाऊं क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध युद्ध नृत्य है। जिसे शादी या धार्मिक आयोजन में ढाल व तलवार के साथ किया जाता है।
हारुल नृत्य
- यह जौनसारी जनजातियों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य के समय रमतुला नामक वाद्ययंत्र अनिवार्य रुप से बजाया जाता है।
बुड़ियात लोकनृत्य
- जौनसारी समाज में यह नृत्य जन्मोत्सव , शादी-विवाह एवं हर्षोल्लास के अन्य अवसरों पर किया जाता है।
पण्डवार्त नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र में पांडवों के जीवन प्रसंगों पर आधारित नवरात्रि में 9 दिन चलने वाले इस नृत्य/नाट्य आयोजन में विभिन्न प्रसंगों के 20 लोकनाट्य होते है।
चौफला नृत्य
- राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्त्री-पुरुषों द्वारा एक साथ अलग-अलग टोली बनाकर किया जाने वाला यह श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य है।
तांदी नृत्य
- गढ़वाल के उत्तरकाशी और जौनपुर (टिहरी) में यह नृत्य किसी विशेष खुशी के अवसर पर एवं माघ महीने में किया जाता है
झुमैलो नृत्य
- तात्कालिक प्रसंगों पर आधारित गढ़वाल क्षेत्र का यह गायन नृत्य झूम-झूम कर नवविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है।
चांचरी नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र में माघ माह की चांदनी रात में स्त्री-पुरुषों द्वारा किए जाने वाला एक शृंगारिक नृत्य है।
छोपती नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य प्रेम एवं रूप की भावना से युक्त स्त्री-पुरुष का एक संयुक्त नृत्य संवाद प्रधान होता है।
घुघती नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं द्वारा मनोरंजन के लिए किया जाता है।
भैलो-भैलो नृत्य
- यह नृत्य दीपावली के दिन भैला बाँधकर किया जाता है।
जागर नृत्य
- यह कुमाऊं एवं गढ़वाल क्षेत्र में पौराणिक गाथाओं पर आधारित नृत्य हैं, य
थडिया नृत्य
- गढ़वाल क्षेत्र में बसंत पंचमी से बिखोत तक विवाहित लड़कियों द्वारा घर के थाड (आगन/चौक) में थडिया गीत गाए जाते है और नृत्य किए जाते है। यह नृत्य प्राय: विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो पहली बार मायके जाती है ।
सरौं नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का ढ़ोल के साथ किए जाने वाला युद्ध गीत नृत्य है। यह नृत्य टिहरी व उत्तरकाशी में प्रचलित है।
पौणा नृत्य
- यह भोटिया जनजाति का नृत्य गीत है। यह सरौं नृत्य की ही एक शैली है। दोनों नृत्य विवाह के अवसर पर मनोरंजन के लिए किए जाते है।
उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार
भारत में मनाये जाने वाले सभी प्रमुख त्यौहार उत्तराखंड में भी बनायें जाते हैं जैसे दीपावली, होली, दशर आदि। इनके अलावा हरेला, भिटुली, बसंत पंचमी, फूलदेई, वटसावित्री, घुघुतिया, गुइयाँ एकादशी आदि उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार हैं।
साथ ही उत्तराखंड में मनाये जाने वाले मेले व पर्व उनकी विविधता के कारण काफी प्रसिद्ध हैं। जैसे नंदादेवी राज यात्रा के दिन होने वाला नंदादेवी मेला, देवीधुरा में मनाया जाने वाला बग्वाल मेला जिसमे लोगों के द्वारा एक दूसरे पर पत्थरों की बारिश की जाती है।
हरेला
- हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार होने के साथ साथ यहां की संस्कृति का एक अभिन्न अंग भी है। इस त्यौहार का सम्बन्ध सामाजिक सोहार्द के साथ साथ कृषि व मौसम से भी है। हरेला, हरियाली अथवा हरकाली हरियाला का समानार्थी है तथा इस पर्व को मुख्यतः कृषि और शिव विवाह से जोड़ा जाता है। देश धनधान्य से सम्पन्न हो, कृषि की पैदावार उत्तम हो, सर्वत्र सुख शान्ति की मनोकामना के साथ यह पर्व उत्सव के रुप में मानाया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि हरियाला शब्द कुमाऊँनी भाषा को मुँडरी भाषा की देन है।
फूलदेई (फूल संक्रांति)
- फूलदेई चैत मास के प्रथम दिन मनाई जाती है इस दिन बच्चे घर-घर जाकर घरो की देहली पर फूल चढाते है
बिखोती
- उत्तराखंड में विषुवत संक्रांति को बिखोती के नाम से जाना जाता है जो बैशाख माह के पहले दिन मनाई जाती है
घी संक्रांति (ओगलिया)
- घी संक्रांति सितम्बर के मध्य में पड़ता है इस दिन सर में घी लगाया जाता है
मकर संक्रांति (घुघुतिया)
- मकर संक्रांति माघ माह के प्रथम दिन मनाई जाती है
खतडुवा
- यह त्यौहार कुमाऊं क्षेत्र में अश्विन माह के पहले दिन मनाया जाता है , यह त्यौहार पशुओ से सम्बंधित है
रक्षा बंधन
- उत्तराखंड में रक्षा बंधन को जन्यो-पुण्यो के नाम से भी जाना जाता है यह त्यौहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है
चैंतोल
- यह त्यौहार मुख्यतः पिथोरागढ़ जनपद में चैत माह में मनाया जाता है
जागड़ा
- यह त्यौहार महासू देवता से सम्बंधित है
भिरौली
- यह त्यौहार संतान कल्याण के लिए मनाया जाता है
नुणाई
- यह त्यौहार देहरादून के जौनसार बाबर क्षेत्र में श्रावण मास में मनाया जाता है |
उत्तराखंड के प्रमुख मन्दिर (Temples of Uttarakhand)
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां कई मंदिर हैं, जिसमें शिव मंदिर अहम भूमिका रखते हैं। आइये आपको कराते हैं
उत्तराखंड के प्रमुख मन्दिर
प्रमुख शिव मन्दिर
- ओमकारेश्वर – ऊखीमठ
- मदमहेश्वर – रुद्रप्रयाग
- बैजनाथ – बागेश्वर
- तुंगनाथ – रुद्रप्रयाग
- बिनसर महादेव – रानीखेत
- जागेश्वर – अल्मोड़ा
- बाघनाथ – बागेश्वर
- केदारनाथ – रुद्रप्रयाग
- कोटेश्वर महादेव – रुद्रप्रयाग
- बालेश्वर मंदिर – चम्पावत
- क्रांतेश्वर महादेव – चम्पावत
- त्रिगुणी नारायण – रुद्रप्रयाग
प्रमुख नाग मन्दिर
- शेषनाग – पांडुकेश्वर
- नाग देव – पौड़ी
- कालिंगा नाग – रंवाई
- नाग राजा – सेनमुखेन
प्रमुख देवी मन्दिर
- वाराही देवी – देवीधुरा (चम्पावत)
- पूर्णागिरी – टनकपुर (चम्पावत)
- चंडी देवी – हरिद्वार
- कामाख्या देवी – पिथोरागढ़
- गर्जिया देवी – रामनगर (नैनीताल)
- कसार देवी – अल्मोड़ा
- बालानी देवी – चकराता (देहरादून)
- मनसा देवी – हरिद्वार
- दूनागिरी – द्वाराहाट (अल्मोड़ा)
- कालिका मंदिर – गंगोलीहाट (पिथोरागढ़)
- ज्वाल्पा देवी – पौड़ी
- श्रीकोट – डीडीहाट (पिथोरागढ़)
- धारी देवी – श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)
- नैना देवी – नैनीताल
उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्ति
देवभूमि उत्तराखण्ड न सिर्फ अपनी अविस्मरणीय सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, अपितु यहाँ के बेटे व बेटियों के भारत के इतिहास में बहुमूल्य योगदान के कारण भी सुप्रसिद्ध है। उन्हीं में से कुछ हस्तियों को उनके योगदान के कारण दूसरे नाम व उपाधियों से जाना जाता है, कुछ खास लोगों के नाम एवं उपनाम निचे दिए गए |
कालू माहरा
- कालू माहरा उत्तराखंड के पहले स्वंत्रता सेनानी थे
- कालू माहरा का जन्म चम्पावत के बिसुंड गाँव में हुआ था
- इन्होने 1857 की क्रांति में भाग लिया तथा एक गुप्त संगठन क्रांतिवीर बनाया
हरगोविंद पन्त
- हर्गोविंग पन्त का जन्म 19 मई 1885 को अल्मोड़ा के चितई में हुआ था
बैरिस्टर मुकुंदीलाल
- जन्म – 14 अक्टूबर 1885 (पाटली गाँव , चमोली)
पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त
- जन्म – 10 सितम्बर 1887 ( खूंट , अल्मोड़ा )
- इन्हें हिमालय पुत्र तथा महाराष्ट्र के नाम से भी जाना जाता था
- गोविन्द बल्लभ उत्तरप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे
- 26 जनवरी 1957 को इन्हें भरत रत्ना की उपाधि से सम्मानित किया गया
हर्ष देव औली
- जन्म – 4 मार्च 1890 (गोसानी , चम्पावत)
- उपनाम – काली कुमाऊं का शेर
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
- जन्म – 18 फरवरी 1894
- उपनाम – गढ़ केशरी
भवानी सिंह रावत
- इनका जन्म 8 अक्टूबर 1910 को पौड़ी में हुआ था
- ये आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक समाजवादी संघ के एकमात्र सदस्य थे
- इन्होने दुगड्डा में शहीद मेले की शुरुआत की
डा . भक्त दर्शन
- जन्म – 12 फरवरी 1912 (भैराड़ गाँव , पौड़ी गढ़वाल)
- इन्होने कुली बेगार प्रथा का अंत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया
श्रीदेव सुमन
- जन्म – मई 1916 (जौल गाँव , टिहरी गढ़वाल)
- इन्होने 23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना की
- 3 मई 1944 को सुमन ने आमरण अनसन प्रारंभ किया और 25 जुलाई 1944 को 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गयी
हेमवती नंदन बहुगुणा
- जन्म – 25 अप्रैल 1919 (पौड़ी गढ़वाल)
- उपनाम – धरती पुत्र , हिम पुत्र
चंडी प्रसाद भट्ट
- जन्म – 1934
- इन्होने दशौली ग्राम स्वराज मंडल की स्थापना की , तथा चिपको आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी
- इन्हें 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरुष्कार से सम्मानित किया गया
कल्याण सिंह रावत
- जन्म – 1953 (बैनोली , चमोली)
- उपनाम – मैती
- इन्होने वन्य जीवो की रक्षा के लिए हिमालय वन्य जीव संस्थान की स्थापना की
गौरा देवी
- जन्म – 1925 (ग्राम लाता , टिहरी गढ़वाल)
- उपनाम – चिपको वुमन
उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्ति व उनके उपनाम
देवभूमि उत्तराखण्ड न सिर्फ अपनी अविस्मरणीय सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, अपितु यहाँ के बेटे व बेटियों के भारत के इतिहास में बहुमूल्य योगदान के कारण भी सुप्रसिद्ध है। उन्हीं में से कुछ हस्तियों को उनके योगदान के कारण दूसरे नाम व उपाधियों से जाना जाता है, कुछ खास लोगों के नाम एवं उपनाम निचे दिए गए
- गिर्दा, जनकवि -गिरीश तिवारी
- काली कुमाऊं का शेर -हर्ष देव ओली
- गुसैं या सै -सुमित्रानंदन पन्त
- सरला बहन -केथरीन हैलीमन
- दैवज्ञ -मुकुन्दराम बड़थ्वाल
- गढ़केसरी – अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
- गर्भभंजक- माधोसिंह भंडारी
- अल्मोड़ा की बेटी -आइरिन पन्त
- टींचरी माई, ठगुली देवी- दीपा देवी
- कुमाऊँ केसरी – बद्रीदत्त पाण्डेय
- हिमालय पुत्र, भारत रत्न – गोविन्द बल्लभ पन्त
- मौलिक पंडित – नैन सिंह रावत
- उत्तराखंड का आजाद – श्रीधर किमोठी
- धरतीपुत्र, हिमपुत्र – हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा
- कुमाऊँ की लक्ष्मीबाई -जियारानी
- चारण – शिवप्रसाद डबराल
- गढ़वाल की झाँसी की रानी – तीलू रौतेली
- शिवानी – गौरा पन्त
- गोरा ब्राह्मण -जिम कार्बेट
- पहाड़ी विल्सन -फेड्रिक विल्सन
- नाक काटने वाली रानी -कर्णावती
- धर्माधिकारी – महिधर शर्मा डंगवाल
- उत्तराखंड के गाँधी – इन्द्रमणि बड़ोनी
- वृक्ष मानव- विश्वेश्वर दत्त सकलानी
- गढ़वाली – बच्चू लाल भट्ट
- गढ़वाल का हातिमताई -कुंवर सिंह नेगी
- गौर्दा, लोकरत्न- गौरी दत्त पांडे
- मैती- कल्याण सिंह रावत
- श्रीमन्त -मोहन लाल उनियाल
- गढ़वाली चित्रकला के जन्मदाता- मौला राम
- कुमाऊं का चाणक्य, कुमाऊं का शिवाजी- पं. हर्ष देव जोशी
- चिपको वुमन -गौरा देवी
- गुमानी पंत – लोक रत्ना पन्त
- कुमाऊँ का गाँधी -देवकी नंदन पांडे
उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन व धार्मिक स्थल
उत्तराखंड के धार्मिक स्थल : उत्तराखंड राज्य को हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में गिना जाता है। भगवान शिव के और अनेक पवित्र मंदिरों के कारण यह प्रसिद्ध है, यहा पर बद्रीनाथ और केदारनाथ, दो ऐसे तीर्थस्थल हैं, जो यहां सदियों पहले से हैं। बद्रीनाथ चार धामों में से एक है और सबसे पवित्र स्थलों में से है। केदारनाथ भी बद्रीनाथ जितना ही पवित्र और दर्शनीय स्थल है। यहां प्राचीन शिव मंदिर है, जहां 12 ज्योर्तिलिंग में से एक शिवलिंग विराजमान हैं। गंगोत्री धरती का वह स्थान है, जिसे माना जाता है कि गंगा ने सबसे पहले छुआ था देवी गंगा यहां एक नदी के रूप में आई थीं। यमुनोत्री यमुना नदी का स्रोत है और इसके पश्चिम में पवित्र मंदिर है। हरिद्वार गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह हिंदुओं का प्राचीन तीर्थस्थल है। ऋषिकेश सभी पवित्र स्थानों के लिए प्रवेश द्वार है।
- हर की पैड़ी – हरिद्वार
- मनसा देवी – हरिद्वार
- चंडी देवी – हरिद्वार
- कुशावर्त घाट – हरिद्वार
- बिल्केश्वर महादेव मंदिर – हरिद्वार
- सप्त ऋषि आश्रम – हरिद्वार
- शांति कुंज – हरिद्वार
- गुच्चुपानी – देहरादून
- टपकेश्वर महादेव – देहरादून
- सहस्त्रधारा – देहरादून
- टाइगर प्रपात – देहरादून
- कालसी – देहरादून
- लाखामंडल – देहरादून
- हनोल – देहरादून
- मसूरी – देहरादून
- कैम्पटी फॉल – मसूरी से 15 किमी की दूरी पर (टिहरी)
- मुनि की रेती – टिहरी जिले में
- गंगोत्री – उत्तरकाशी
- गौमुख – उत्तरकाशी
- हर्षिल – उत्तरकाशी
- हर की दून – उत्तरकाशी
- बद्रीनाथ – चमोली
- आदि बद्री – चमोली
- भविष्य बद्री – चमोली
- वृद्ध बद्री – चमोली
- योगध्यान बद्री – चमोली
- हेमकुण्ड साहिब – चमोली
- माणा – चमोली
- ऊखीमठ – रुद्रप्रयाग
- तुंगनाथ – रुद्रप्रयाग
- मदमहेश्वर नाथ – रुद्रप्रयाग
- गुप्त काशी – रुद्रप्रयाग
- त्रिजुगी नारायण – रुद्रप्रयाग
- चंबा – टिहरी गढ़वाल
- धनोल्टी – टिहरी गढ़वाल
- बूडा केदार – टिहरी गढ़वाल
- सोम का भांडा – पौड़ी गढ़वाल
- कण्वाश्रम – पौड़ी गढ़वाल
- दुगड्डा – पौड़ी गढ़वाल
- खिरसू – पौड़ी गढ़वाल
- लेंस डाउन – पौड़ी गढ़वाल
- देवलगड़ – पौड़ी गढ़वाल
- नैना पीक – नैनीताल
- भुवाली – नैनीताल
- भीमताल – नैनीताल
- कैंची धाम – नैनीताल
- कालाढूंगी – नैनीताल
- मुक्तेश्वर – नैनीताल
- रामगड – नैनीताल
- गार्जिय – रामनगर (नैनीताल)
- कटारमल सूर्य मंदिर – अल्मोड़ा
- चितई मंदिर – अल्मोड़ा
- जागेश्वर – अल्मोड़ा
- चौबटिया – अल्मोड़ा
- मुनस्यारी – पिथोरागढ़
- मिलम ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- गंगोलीहाट – पिथोरागढ़
- हाट कलिका मंदिर – पिथोरागढ़
- धारचूला – पिथोरागढ़
- छिपला केदार – पिथोरागढ़
- थल केदार – पिथोरागढ़
- बागनाथ – बागेश्वर
- कौसानी – बागेश्वर
- पांडुस्थल – बागेश्वर
- एक हथिया नौला – चम्पावत
- नौ ढुंगा घर – चम्पावत
- मायावती आश्रम – चम्पावत
- मीठा रीठा साहिब – चम्पावत
- देवीधुरा – चम्पावत
- नानकमत्ता साहिब – उधम सिंह नगर
हमने इस पोस्ट में Uttrakhand GK PDF Download उत्तराखंड के संस्थान उत्तराखंड के प्रमुख खिलाड़ी उत्तराखंड के प्रमुख संस्थान उत्तराखंड शोध संस्थान की स्थापना किसने की उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तराखंड के धार्मिक स्थल उत्तराखंड के पर्यटन स्थल के नाम उत्तराखंड के पर्यटन स्थल पर निबंध उत्तराखंड के कवि उत्तराखंड के हवाई अड्डे उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति उत्तराखंड जानकारी उत्तराखंड का परिचय से संबंधित जानकारी दी है तो इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें. अगर इनके बारे में आपका कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके पूछो और अगर आपको यह जानकारी फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें.