उत्तराखंड राज्य से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
उत्तराखंड राज्य से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
उत्तराखंड का सामान्य ज्ञान Pdf सभी कॉम्पीटिशन एग्जाम के समान्य ज्ञान के सेक्शन के अन्दर सभी राज्य की समान्य ज्ञान से सम्बंधित से प्रश्न ही पूछे जाते है और यदि कोई भी उत्तराखंड पुलिस या कोई राज्य लेवल का एग्जाम है उसके अन्दर सबसे ज्यादा राज्य से सम्बंधित सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछते है जैसेः राज्य की जनसँख्या ,राजभाषा ,राजधानी आदि से सबंधित बहुत से प्रश्न बनते है इसलिए कोई भी उमीदवार जो किसी कॉम्पीटिशन एग्जाम कि तैयारी कर रहा है उसे सभी राज्य समान्य ज्ञान से सम्बंधित से रिलेटेड जानकारी होनी चाहिए तभी वाह समान्य ज्ञान के सेक्शन को अच्छी तरह से और जल्दी कर सकता है तो आज हम उत्तराखंड का इतिहास से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देंगे जो अक्सर एग्जाम में पूछे जाते है|
उत्तराखंड के इतिहास
उत्तराखंड का इतिहास इसके गौरवपूर्ण अतीत का गीत गाता है। इसकी उत्पत्ति और विकास का लंबा इतिहास रहा है जिसमें कई महान राजाओं और सम्राज्यों की झलकियां हैं – जैसे कुशान, कुडिना, कनिष्क, समुद्रगुप्त, कटुरिया, पलास, चंद्र और पवार। यदि उत्तराखंड के इतिहास के बारे में बात करें तो कहा जा सकता है कि इसका संदर्भ कई हिंदू पुराणों में मिलता है, लेकिन इसके इतिहास को सबसे अच्छे तरीके से गढ़वाल और कुमाउं के इतिहास के माध्यम से समझा जा सकता है।उत्तराखंड के इतिहास को तीन भागो में बांटा गया है |
1. प्रागैतिहासिक काल
2. आधएतिहासिक काल
3. ऐतिहासिक काल ( प्राचीन काल , मध्य काल , आधुनिक काल )
प्रागैतिहासिक काल :
प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी हमें पाषाण कालीन उपकरण , गुफाओ , शैल चित्रों , कंकाल ,धातु उपकरण आदि से मिलती है | इस काल के कुछ प्रमुख साक्ष्य निम्नलिखित है :
लाखु गुफा – लाखू गुफा अल्मोरा के बाड़ेछीना में स्थित है इसकी खोज 1963 में की गयी यहाँ से मानव व पशुओ के चित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को नृत्य करते दिखाया गया है तथा चित्रों को रंगों से भी सजाया गया है |
ग्वारख्या गुफा – ग्वारख्या गुफा चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव में स्थित है यहाँ से मानव , भेड़ , लोमड़ी , बारहसिंगा के रंगीन चित्र मिले है |
मलारी गाँव – चमोली जिले में स्थित मलारी गाँव से गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सन 2002 में हजारो वर्ष पुराने नर कंकाल , मिट्टी के बर्तन तथा एक 5.2 किलो का सोने का मुखौटे की खोज की | यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तन पकिस्तान की स्वात घाटी के सिल्प के समान है |
किमनी गाँव – चमोली जिले में थराली के पास स्थित किमनी गाँव से हथियार व पशुओ के शैल चित्र मिले है
ल्वेथाप – अल्मोड़ा के ल्वेथाप से शैलचित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को शिकार करते और हाथ में हाथ डालकर नृत्य करते दिखाया गया है |
बनकोट – पिथोरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियाँ मिली है |
फलसीमा – अल्मोड़ा जिले के फलसीमा से योग तथा नृत्य मुद्रा वाली मानव आकृतियाँ मिली है |
हुडली – उत्तरकाशी के हुडली से नीले रंग से रंगर गए शैलचित्र मिले है |
पेटशाल – अल्मोड़ा के पेटशाल से कत्थई रंग की मानव आकृतियाँ मिली है |
आधऐतिहासिक काल –
- आधऐतिहासिक काल को पौराणिक काल भी कहा जाता है इस काल के बारे में जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथो से मिलती है | इस काल का विस्तार चतुर्थ शताब्दी से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है
- उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिसमे इसे देवभूमि एवं मनीषियों की पुण्य भूमि कहा गया है
- ऐतरेव ब्राहमण में इस क्षेत्र लिए उत्तर कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है
- स्कन्दपुराण में 5 हिमालयी खंडो (केदारखंड , मानसखंड , नेपाल , जालंधर तथा कश्मीर ) का उल्लेख है जिनमे से दो केदारखंड (गढ़वाल ) तथा मानसखंड (कुमाऊ ) उत्तराखंड में स्थित है |
- पुराणों में केदारखंड व मानसखंड के संयुक्त क्षेत्र के लिए उत्तर-खंड, खसदेश एवं ब्रह्मपुर आदि नामो का प्रयोग किया गया है
- बौध साहित्य के पाली भाषा वाले ग्रंथो में उत्तराखंड के लिए हिमवंत शब्द प्रयुक्त किया गया है |
गढ़वाल क्षेत्र-
- गढ़वाल को पहले बद्रिकाश्रम क्षेत्र, स्वर्गभूमि , तपोभूमि आदि नामो से जाना जाता था लेकिन बाद में 1515 ई . के आसपास पवार शासक अजयपाल द्वारा यहाँ के 52 गढ़ों को जीत लेने के बाद इसका नाम गढ़वाल हो गया|
- ऋग्वेद के अनुसार यहाँ के प्राण नामक गाँव में सप्त ऋषियों ने प्रलय के बाद अपने प्राणों की रक्षा की|
- यहाँ के अल्कापुरी ( कुबेर की राजधानी ) नमक स्थान को आदि पूर्वज मनु का निवास स्थल कहा जाता है |
- इस क्षेत्र के बदरीनाथ के पास स्थित गणेश , नारद , मुचकुंद , व्यास एवं स्कन्द आदि गुफाओ में वैदिक ग्रंथो की रचना की गयी थी |
- गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग के सितोनस्यु पट्टी में सीता जी पृथ्वी में समायी थी इसी कारण यहाँ (मनसार ) में प्रतिवर्ष मेला लगता है |
- रामायण कालीन बाणासुर की राजधानी ज्योतिश्पुर ( जोशीमठ ) थी |
- पुलिंद रजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी |
- प्राचीन काल में इस क्षेत्र में कण्वाश्रम व बद्रिकाश्रम नामक दो विद्यापीठ थे कण्वाश्रम दुष्यंत व सकुन्तला के प्रेम प्रसंग के कारण प्रशिद्ध है इसी आश्रम में सम्राट भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा |
- कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है महाकवि काली दास ने अभिज्ञान सकुंतलम की रचना कण्वाश्रम में ही की थी वर्तमान में इस स्थान की चौकाघाट कहा जाता है |
कुमाऊँ क्षेत्र-
- पौराणिक ग्रंथो के अनुसार चम्पावत के पास में स्थित कान्तेश्वर पर्वत के नाम पर इसका नाम कुमाऊँ पड़ा |
- कुमाऊँ का सर्वाधिक उल्लेख स्कंद्पुरण के मानसखंड में मिलता है
- ब्रह्म एवं वायु पुराण के अनुसार यहाँ किरात , किन्नर , यक्ष , गन्धर्व , नाग आदि जातियां निवास करती थी , अल्मोड़ा का जाखन देवी मंदिर यक्षो के निवास की पुष्टि करता है |
- किरातो के वंशज अस्कोट एवं डोडीहाट नामक स्थान में निवास करते है |
- देहरादून के कालसी नामक स्थान में अशोक द्वारा 257 ई . पू. में पाली भाषा में स्थापित अभिलेख है , कालसी अभिलेख में यहाँ के निवासियों के लिए पुलिंद तथा इस क्षेत्र के लिए आपरांत शब्द का प्रयोग किया गया है |
- देहरादून के लाखामंडल से राजकुमारी इश्वरा का शिलालेख मिला है
ऐतिहासिक काल –
ऐतिहासिक काल को तीन भागो में बांटा जा सकता है
- प्राचीन काल
- मध्य काल
- आधुनिक काल
प्राचीन काल
प्राचीन काल ( Ancient Period )- प्राचीन कल में उत्तराखंड पर अनेक जातियों ने शासन किया जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है
कुणिन्द शासक –
- कुणिन्द उत्तराखंड पर शासन करने वाली पहली राजनैतिक शक्ति थी |
- अशोक के कालसी अभिलेख से ज्ञात होता है की कुणिन्द प्रारंभ में मौर्यों के अधीन थे |
- कुणिन्द वंश का सबसे शक्तिशाली राजा अमोधभूति था |
- अमोधभूति की मृत्यु के बाद उत्तराखंड के मैदानी भागो पर शको ने अधिकार कर लिया , शको के बाद तराई वाले भागो में कुषाणों ने अधिकार कर लिया |
- उत्तराखंड में यौधेयो के शाशन के भी प्रमाण मिलते है इनकी मुद्राए जौनसार बाबर तथा लेंसडाउन ( पौड़ी ) से मिली है |
- ‘ बाडवाला यज्ञ वेदिका ‘ का निर्माण शीलवर्मन नामक राजा ने किया था , शील वर्मन को कुछ विद्वान कुणिन्द व कुछ यौधेय मानते है |
कर्तपुर राज्य –
- कर्तपुर राज्य के संस्थापक भी कुणिन्द ही थे कर्तपुर में उत्तराखंड , हिमांचल प्रदेश तथा रोहिलखंड का उत्तरी भाग सामिल था |
- कर्तपुर के कुणिन्दो को पराजित कर नागो ने उत्तराखंड पर अपना अधिकार कर लिया |
- नागो के बाड़ कन्नोज के मौखरियो ने उत्तराखंड पर शासन किया |
- मौखरी वंश का अंतिम शासक गृह्वर्मा था हर्षवर्धन ने इसकी हत्या करके शासन को अपने हाथ में ले लिया |
- हर्षवर्धन के शासन काल में चीनी यात्री व्हेनसांग उत्तराखंड भ्रमण पर आया था |
कार्तिकेयपुर राजवंश –
- हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तराखंड पर अनेक छोटी – छोटी शक्यियो ने शासन किया , इसके पश्चात 700 ई . में कर्तिकेयपुर राजवंश की स्थापना हुइ , इस वंश के तीन से अधिक परिवारों ने उत्तराखंड पर 700 ई . से 1030 ई. तक लगभग 300 साल तक शासन किया |
- इस राजवंश को उत्तराखंड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कहा जाता है |
- प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजवंश की राजधानी जोशीमठ (चमोली ) के समीप कर्तिकेयपुर नामक स्थान पर थी बाद में राजधानी बैजनाथ (बागेश्वर ) बनायीं गयी |
- इस वंस का प्रथम शासक बसंतदेव था बसंतदेव के बाद के राजाओ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलाती है इसके बाद खर्परदेव के शासन के बारे में जानकारी मिलती है खर्परदेव कन्नौज के राजा यशोवर्मन का समकालीन था इसके बाद इसका पुत्र कल्याण राजा बना , खर्परदेव वंश का अंतिम शासक त्रिभुवन राज था |
- नालंदा अभिलेख में बंगाल के पाल शासक धर्मपाल द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण करने की जानकारी मिलती है इसी आक्रमण के बाद कार्तिकेय राजवंश में खर्परदेव वंश के स्थान पर निम्बर वंश की स्थापना हुई , निम्बर ने जागेश्वर में विमानों का निर्माण करवाया था
- निम्बर के बाद उसका पुत्र इष्टगण शासक बना उसने समस्त उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया था जागेश्वर में नवदुर्गा , महिषमर्दिनी , लकुलीश तथा नटराज मंदिरों का निर्माण कराया |
- इष्टगण के बाद उसका पुत्र ललित्शूर देव शासक बना तथा ललित्शूर देव के बाद उसका पुत्र भूदेव शासक बना इसने बौध धर्मं का विरोध किया तथा बैजनाथ मंदिर निर्माण में सहयोग दिया |
- कर्तिकेयपुर राजवंश में सलोड़ादित्य के पुत्र इच्छरदेव ने सलोड़ादित्य वंश की स्थापना की
- कर्तिकेयपुर शासनकाल में आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आये उन्होंने बद्रीनाथ व केदारनाथ मंदिरों का पुनरुद्धार कराया | सन 820 ई . में केदारनाथ में उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया |
- कर्तिकेयपुर शासको की राजभाषा संस्कृत तथा लोकभाषा पाली थी |
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