Haryana HSSC Clerk Hindi Previous Year Question Papers
Haryana HSSC Clerk Hindi Previous Year Question Papers
HSSC Clerk की तैयारी करने वाले सभी उम्मीदवारों को इस परीक्षा से संबंधित काफी महत्वपूर्ण स्टडी मैटेरियल चाहिए होता है ताकि वह इस परीक्षा की तैयारी सबसे अच्छी कर सके तो जो उम्मीदवार HSSC Clerk की तैयारी कर रहा है उसके लिए हमारी इस पोस्ट में HSSC Clerk परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं जिन्हें आप ध्यानपूर्वक पढ़ें यह प्रशन पहले भी HSSC Clerk की काफी परीक्षा में पूछे जा चुके हैं और आगे आने वाली परीक्षा में पूछे जा सकते हैं.
निर्देश : निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर सम्बद्ध वैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर का चयन कर उसे चिन्हित करें।
हम सब लोग एक भीड़ से गुजर रहें हैं। जो सवेरे घर से निकलकर दफतर और वापस घर जाकर दिन सार्थक करते हैं, उन्हें भीड़ से सिर्फ बस में साक्षात्कार होता है। जो मोटर से चलते हैं, उनके लिए भीड़ एक अवरोध है जिसे वे लोग सशक्त और फुर्तीली सवारी गाड़ी से पार कर जाते हैं। जो पैदल चलते हैं वे खुद भीड़ हैं। लेकिन ये तीनों वास्तव में न तो भीड़ से कुछ समय के लिए निपटकर बाकी समय मुक्त है न अलग-अलग रास्तों के कारण भीड़ के अंदर कम या जयादा फँसे हुए हैं। ये सब बिलकुल एक ही तरह से और हर समय पूरी तौर से भीड़ में फँस चुके हैं सिर्फ इतना है की ये जानते नहीं, और यह तो बिलुल नहीं जानते की जिसके पास सस्ता है, वह राज्य की हो या संगठित उद्योग की, वह भीड़ का इस्तेमाल भीड़ में फँसे प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध करता है। जान भी लें तो सिर्फ इतना जानते हैं कि हम संसार के नहीं रह गए हैं और हमारे चारो तरफ जीवन नहीं बल्कि भीड़ है जो अपनी शक्ल भीड़ के पड़े पर्दे पर नहीं देख सकते। अगर किसी को यह शक्ल दिखाई देने लगे, तो उसे मालूम होता है कि वह अब जिस भीड़ को पहचानता है वह अभी तक उसके विरुद्ध इस्तेमाल की जाती रही है। अपनी शक्ल का यह परिचय कवि के लिए, जो एक भीड़ से अन्य सामान्य जनों की अपेक्षा अधिक गहरा भाषायी सम्बन्ध रखता है, एक मुक्त कर देने वाला अनुभव बन जाता है। उसका विपर्यय भी सही है कि जब तक उसे अपनी शक्ल नहीं दिखाई देती है, वह फँसा रहता है।
• भीड़ का इस्तेमाल करना
• भीड़ में खो जाना
• भीड़ से दूर रहना
• विरोधियों के विरुद्ध
• भीड़ में फँसे लोगों के विरुद्ध
• सरकार के विरुद्ध
• दौड़ने वालों के लिए
• मोटर में चलने वालों के लिए
• पेडल चलने वालों के लिए
• सरकार
• पूँजीपति
• सत्ताधारी
निर्देश : नीचे दिए गद्यांश को पढ़कर उनपर आधारित 4 प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
भूषण महाराज ने विषय और विशेषतया नामक चुनने में बड़ी बुद्धिमता से काम लिया है। शिवजी और छत्रसाल से महानुभावों पवित्र चरित्र का वर्णन करने वाले की जितनी प्रशंसा की जाए, थोड़ी है। शिवजी ने एक जिम्मेदार और बीजपुराधीश के नौकर के पुत्र होकर चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने की इच्छा को पूर्ण-सा कर दिखाया और छत्रसाल बुन्देला ने जिस समय मुगलों का सामना करने का साहस किया, उस समय उसके पास केवल पांच सवार और पच्चीस पैदल थे। इसी सेना से इस महानुभाव ने दिल्ली करने की हिम्मत की और मरते समय अपने उत्तराधिकारियों के लिए दो करोड़ वार्षिक मुनाफे का स्वतंत्र राज्य छोड़ा।
• शिवाजी
• वीर सिंह जूदेव
• औरंगजेब
• शिव वैभव, शिवा चिंतन
• शिवा चरितम, शिवा विलास
• शिव कथा, शिवा विक्रम
• भूषण की कला
• भूषण की बुद्धिमत्ता
• भूषण का काव्यनायक चयन
• दो सवार और पाँच पैदल
• पाँच सवार और पच्चीस पैदल
• पच्चीस सवार और पाँच पैदल
निर्देश : प्रस्तुत गद्यांश को पढ़िए और उचित विकल्पों का चयन करके निच दिए गये 4 प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही मिटाना पर्याप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
• रंग-भेद और सामाजिक स्तर से संबंधित भेदभाव
• धार्मिक भिन्ता पर आश्रित भेदभाव
• विदेशी होने से उत्पन्न मन-मुटाव
• पारिवारिक अपनत्व की भावना
• अहिंसा एवं सत्य के प्रति लगाव
• विश्वबंधुत्व की भावना
• गराष्ट्रीयता के विचारों पर
• नैतिक मान्यताओं पर
• शांति की सदभावना पर
• प्रवासी भारतीय और गांधी जी
• गांधी जी और विदेशी शासन
• गांधी जी की नैतिकता
निर्देश : निम्नलिखित अवतरण पर आधारित पाँच प्रश्न दिए गए हैं। अवतरण को ध्यान से पढ़िए तथा प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए दिए गए चार विकल्पों में से उचित विकल्प का चयन कीजिए तथा निर्देशानुसार चिन्ह लगाइए। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए चरित्र निर्माण परम आवश्यक है। जिस प्रकार वर्तमान में भौतिक निर्माण का कार्य अनेक योजनाओं के माध्यम से तीव्र गति के साथ सम्पन्न हो रहा है, वैसे ही वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि देशवासियों के चरित्र निर्माण के लिए भी प्रयत्न किया जाए। उत्तम चरित्रवान व्यक्ति ही राष्ट्र की सर्वोच्च सम्पदा है। जनतन्त्र के लिए तो यह एक महान कल्याणकारी योजना है। जन-समाज में राष्ट्र, संस्कृति, समाज एवं परिवार के प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य है, इसका पूर्ण रूप से बोध कराना एवं राष्ट्र में व्याप्त समग्र भ्रष्टाचार के प्रति निषेधात्मक वातावरण का निर्माण करना ही चरित्र निर्माण का प्रथम सोपान है। पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से आज हमारे मस्तिष्क में भारतीयता के प्रति ‘हीन भावना’ उत्पन्न हो गई है। चरित्र निर्माण, जो कि बाल्यावस्था से ही ऋषिकुल, गुरुकुल, आचार्यकुल की शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय से किया जाता था, आज की लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पध्दति से संचालित स्कूलों एवं कॉलेजों के लिए एक हास्यास्पद विषय बन गया है। आज यदि कोई पुरातन संस्कारी विद्यार्थी संध्यावंदन या शिखा-सूत्र रखकर भारतीय संस्कृतिमय जीवन बिताता है तो अन्य छात्र उसे ‘बुध्दू’ या अप्रगतिशील कहकर उसका मजाक उड़ाते हैं। आज हम अपने भारतीय आदेशों का परित्याग करके पश्चिम के अंधानुकरण को ही प्रगति मान बैठे हैं। इसका घातक परिणाम चारित्र्य – दोष के रूप में आज देश में सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहा है।
• समाजोपयोगी कार्यो के लि
• मानवमात्र के कल्याण के लिए
• राष्ट्र की योजनाओं के संचालन के लिए
• निष्ठावान श्रमिक
• शक्तिशाली सिपाही
• उत्तम चरित्रवान व्यक्ति
• भ्रष्टाचार के प्रति निषेधात्मक वातावरण
• राजनीति के कुशल दाँव-पेंच
• चरित्र निर्माण के लिए शैक्षिक वातावरण
• सत्संग में अधिक समय नहीं बिताता
• भारतीय संस्कृतिमय जीवन बिताता है
• धार्मिक वातावरण में जीवन बिताता है
• लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पध्दति
• वर्तमान वैज्ञानिक शिक्षा पध्दति
• प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा पध्दति
• पल्लव-गुंजन-युगवाणी-युगान्त
• गुंजन-पल्लव-युगान्त-युगवाणी
• पल्लव-युगान्त-गुंजन-युगवाणी
• अहंकारी हो जाना
• सरदर्द हो जाना
• पीछे मुड़कर देखने लगना
• पद
• बंधन
• आचरण
• भीड़ में फँसे लोग
• भीड़ की शक्ल
• भीड़ में कवि
• विशेषण का
• परसर्ग का
• क्रिया का
• मनो + अर्थ
• मनः + अरथ
• मने + ओरथ
• प्रती + उपकार
• प्रति + अपकार
• प्रति + उपकार
• करुण
• वियोग श्रृंगार
• संयोग श्रृंगार