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चिपको आंदोलन तथा बीज बचाओ आंदोलन का क्या महत्व है

चिपको आंदोलन तथा बीज बचाओ आंदोलन का क्या महत्व है

वनों को विनाश से बचाने में चिपको आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। हिमालय क्षेत्र के इस आंदोलन ने कई प्रदेशों में वनों के कटाव का सफलतापूर्वक विरोध किया है। इसने यह भी दिखा दिया है कि स्थानीय पौधों के प्रयोग से सामुदायिक वनारोपण को पूरी तरह सफल बनाया जा सकता है। आज संरक्षण के परंपरागत तरीकों को पुनर्जीवित करने के साथ नये-नये तरीकों के विकास के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं ताकि पारिस्थितिक संतुलन बना रहे। आज टिहरी में किसान बीज बचाओ आंदोलन को महत्त्व देते हैं। इसने यह दिखाया है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं, जो आर्थिक और स्वास्थ्य दोनों की दृष्टि से अधिक उपयोगी हैं।

चिपको आंदोलन और जंगल बचाओ आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

चिपको आंदोलन मूलत: उत्तराखण्ड के वनों की सुरक्षा के लिए वहां के लोगों द्वारा 1970 के दशक में आरम्भ किया गया आंदोलन है। इसमें लोगों ने पेड़ों केा गले लगा लिया ताकि उन्हें कोई काट न सके। यह आलिंगन दर असल प्रकृति और मानव के बीच प्रेम का प्रतीक बना और इसे “चिपको ” की संज्ञा दी गई।

बीज बचाओ आंदोलन से आप क्या समझते हैं?

बीज बचाओ आन्दोलन, परम्परागत अनाजों एवं उनके बीजों को संरक्षित रखने का अभियान है। इसके प्रणेता चिपको आंदोलन से निकले विजय जड़धारी हैं।

चिपको आंदोलन क्यों महत्वपूर्ण था?

चिपको आंदोलन 1973 में एक अहिंसक आंदोलन था जिसका उद्देश्य पेड़ों की सुरक्षा और संरक्षण करना था, लेकिन, शायद, इसे वनों के संरक्षण के लिए महिलाओं की सामूहिक लामबंदी के लिए सबसे अच्छी तरह से याद किया जाता है, जिससे दृष्टिकोण में भी बदलाव आया। समाज में अपनी स्थिति के संबंध में। पेड़ों की कटाई और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के खिलाफ विद्रोह 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ और कुछ ही समय में उत्तर भारत के अन्य राज्यों में फैल गया।

चिपको आंदोलन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इस आंदोलन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हिमालयन रेंज में जंगल की कटाई पर 15 साल का बैन लगाने के कानून बनाना पड़ा। इसी के बाद 1980 का वन कानून भी बना और देश में पर्यावरण मंत्रालय का अस्तित्व सामने आया। ये आंदोलन उत्तर प्रदेश की अलकनंदा घाटी पर स्थित मांडल गांव से अप्रैल 1973 में शुरू हुआ।

चिपको आंदोलन का नारा क्या है?

तीस साल पहले उत्तरांचल के पर्वतीय इलाक़ों में पेड़ों से चिपककर महिलाओं ने एक नारा दिया था – पहले हमें काटो तब जंगल और पेड़ काटने गये ठेकेदारों को उनके सामने हथियार डालने पड़े थे. ये चिपको आंदोलन था.

बीज बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ था?

बीजों को बचाने के लिए विजय ने 1986 में ‘बीज बचाओ आंदोलन’ शुरू किया था, जोकि अब तक जारी है.

नर्मदा बचाओ आंदोलन का उद्देश्य क्या है?

शुरू में आंदोलन का उददेश्य बांध को रोककर पर्यावरण विनाश तथा इससे लोगों के विस्थापन को रोकना था। बाद में आंदोलन का उद्देश्य बांध के कारण विस्थापित लोगों को सरकार द्वारा दी जा रही राहत कार्यों की देख-रेख तथा उनके अधिकारों के लिए न्यायालय में जाना बन गया।

चिपको आंदोलन के जनक कौन है?

आज से करीब 45 साल पहले उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन. इस आंदोलन की चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया.

चिपको आंदोलन कब और कहां हुआ था?

चिपको आंदोलन की पहली लड़ाई 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई।

कब और कैसे हुई चिपको आंदोलन की शुरुआत

चिपको आंदोलन जंगलों और पेड़ों की कटाई से जुड़ा है। इसकी पृष्ठभूमि उत्तराखंड की है, जहां के वनों की सुरक्षा के लिए 1970 के दशक में लोगों ने आंदोलन शुरू किया इस दौरान लोग पेड़ों को गले लगाकर उन्हें कटने से बचाया करते थे। इसे मानक और प्रकृति के बीच के प्रेम का प्रतीक मानते हुए चिपको आंदोलन नाम दिया गया। 26 मार्च 1974 को उत्तराखंड के चमोली जिले में ढाई हजार पेड़ों की नीलामी के बाद ठेकेदार ने मजदूरों को पेड़ काटने के लिए जंगल में भेजा लेकिन उनका सामना रैणी गांव की महिलाओं से हुआ, जो कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गईं। उन्होंने कहा कि पेड़ों का काटने से पहले उन्हें काटा जाएं। उनकी इस निडरता की गूंज पूरे भारत में सुनाई दी।

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