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मानव शरीर में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोग एवं उनके लक्षण

मानव शरीर में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोग एवं उनके लक्षण

मानव शरीर में होने वाले विभिन्न प्रकार के रोग एवं उनके लक्षण – आज सभी कॉम्पीटिशन एग्जाम में समान्य ज्ञान के सेक्शन में मानव शरीर से सबंधित बहुत से प्रश्न पूछे जाते है क्योकि मानव शरीर समान्य ज्ञान का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है इसलिए यदि कोई उमीदवार किसी कॉम्पीटिशन एग्जाम की तैयारी  कर रहा है तो उसे मानव शरीर से सबंधित समान्य ज्ञान होना चाहिए इसलिए आज हम मानव शरीर के बारे  में बतायेंगे  यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको मानव शरीर से सबंधित जानकारी होनी चाहिए इनमे से प्रश्न अक्सर एग्जाम में पूछे जाते है|

रोग की परिभाषा:

रोग (बीमारी) का अर्थ है अस्वस्थ अर्थात असहज होना। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर के अलग–2 हिस्सों का सही से काम नहीं करना। अनुवांशिक विकार, हार्मोन का असंतुलन, शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का सही तरीके से काम नहीं करना, कुछ ऐसे कारक हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। आंतरिक स्रोतों द्वारा होने वाले रोग जैविक या उपापचयी रोग कहलाते हैं, जैसे– हृदयाघात, गुर्दे का खराब होना, मधुमेह, एलर्जी, कैंसर आदि और बाहरी कारकों द्वारा होने वाले रोगों में क्वाशियोरकोर, मोटापा, रतौंधी, सकर्वी आदि प्रमुख हैं। कुछ रोग असंतुलित आहार की वजह से सूक्ष्म–जीवों जैसे – विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, कृमि, कीड़ों आदि द्वारा भी होते हैं। पर्यावरण प्रदूषक, तंबाकू, शराब और नशीली दवाएं कुछ ऐसे अन्य महत्वपूर्ण बाहरी कारक हैं जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

रोगों के प्रकारः

1. जन्मजात रोग: ऐसे रोगों को कहा जाता है जो नवजात शिशु में जन्म के समय से ही विद्यमान होते हैं। ये रोग आनुवांशिक अनियमितताओं या उपापचयी विकारों या किसी अंग के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। ये मूल रूप से स्थायी रोग हैं जिन्हें  आमतौर पर आसानी से दूर नहीं किया जा सकता है, जैसे – आनुवंशिकता के कारण बच्चों में कटे हुए होंठ (हर्लिप), कटे हुए तालु, हाथीपाँव जैसी बीमारियां, गुणसूत्रों में असंतुलन की वजह से मंगोलिज्म जैसी बीमारी, हृदय संबंधी रोग की वजह से बच्चा नीले रंग का पैदा होना आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

2. अर्जित रोग: ऐसे रोगों या विकारों को कहते हैं जो जन्मजात नहीं होते लेकिन विभिन्न कारणों और कारकों की वजह से हो जाते हैं। इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है:

  • संचायी या संक्रामक रोग: ये रोग कई प्रकार के रोगजनक वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, कवक और कीड़ों की वजह से होते हैं। ये रोगजनक आमतौर पर रोगवाहकों की मदद से एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं
  • गैर–संचारी या गैर–संक्रामक रोग या अपक्षयी रोग: ये रोग मनुष्य के शरीर में कुछ अंगों या अंग प्रणाली के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। इनमे से कई रोग पोषक तत्वों, खनिजों या विटामिनों की कमी से भी होते हैं, जैसे – कैंसर, एलर्जी इत्यादि।

रक्ताधान की वजह से फैलने वाले रोग:

एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम): इस रोग में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है और यह इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एचआईवी) की वजह से होता है। एचआईवी दो प्रकार के होते हैं– HIV-1 और HIV-2. एड्स से संबंधित फिलहाल सबसे आम वायरस HIV-1 है। अफ्रीका के जंगली हरे बंदरों के खून में पाया जाने वाला सिमीयन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एसआईवी) HIV-2 के जैसा ही है। एचआईवी एक रेट्रोवायरस है। यह आरएनए से डीएनए बना सकता है। एचआईवी से प्रभावित होने वाली प्रमुख कोशिका सहायक टी– लिम्फोसाइट है। यह कोशिका सीडी–4 रेसेप्टर के रूप में होती हैं। एचआईवी धीरे– धीरे टी–लिम्फोसाइट्स को नष्ट कर देता है। जिसके कारण मरीज में कभी–कभी लिम्फ नोड्स में हल्का सूजन, लंबे समय तक चलने वाला बुखार, डायरिया या अन्य गैर– विशिष्ट लक्षण दिखाई देते हैं।

  बैक्टीरिया से होने वाले रोग

रोग का नाम रोगाणु का नाम प्रभावित अंग लक्षण
हैजा बिबियो कोलेरी पाचन तंत्र उल्टी व दस्त, शरीर में ऐंठन एवं डिहाइड्रेशन
टी. बी. माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस फेफड़े खांसी, बुखार, छाती में दर्द, मुँह से रक्त आना
कुकुरखांसी वैसिलम परटूसिस फेफड़ा बार-बार खांसी का आना
न्यूमोनिया डिप्लोकोकस न्यूमोनियाई फेफड़े छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
ब्रोंकाइटिस जीवाणु श्वसन तंत्र छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
प्लूरिसी जीवाणु फेफड़े छाती में दर्द, बुखार, सांस लेने में परेशानी
प्लेग पास्चुरेला पेस्टिस लिम्फ गंथियां शरीर में दर्द एवं तेज बुखार, आँखों का लाल होना तथा गिल्टी का निकलना
डिप्थीरिया कोर्नी वैक्ट्रियम गला गलशोथ, श्वांस लेने में दिक्कत
कोढ़ माइक्रोबैक्टीरियम लेप्र तंत्रिका तंत्र अंगुलियों का कट-कट कर गिरना, शरीर पर दाग
टाइफायड टाइफी सालमोनेल आंत बुखार का तीव्र गति से चढऩा, पेट में दिक्कत और बदहजमी
टिटेनस क्लोस्टेडियम टिटोनाई मेरुरज्जु मांसपेशियों में संकुचन एवं शरीर का बेडौल होना
सुजाक नाइजेरिया गोनोरी प्रजनन अंग जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
सिफलिस ट्रिपोनेमा पैडेडम प्रजनन अंग जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
मेनिनजाइटिस ट्रिपोनेमा पैडेडम मस्तिष्क सरदर्द, बुखार, उल्टी एवं बेहोशी
इंफ्लूएंजा फिफर्स वैसिलस श्वसन तंत्र नाक से पानी आना, सिरदर्द, आँखों में दर्द
ट्रैकोमा बैक्टीरिया आँख सरदर्द, आँख दर्द
राइनाटिस एलजेनटस नाक नाक का बंद होना, सरदर्द
स्कारलेट ज्वर बैक्टीरिया श्वसन तंत्र बुखार

वायरस से होने वाले रोग

रोग का नाम प्रभावित अंग लक्षण
गलसुआ पेरोटिड लार ग्रन्थियां लार ग्रन्थियों में सूजन, अग्न्याशय, अण्डाशय और वृषण में सूजन, बुखार, सिरदर्द। इस रोग से बांझपन होने का खतरा रहता है।
फ्लू या एंफ्लूएंजा श्वसन तंत्र बुखार, शरीर में पीड़ा, सिरदर्द, जुकाम, खांसी
रेबीज या हाइड्रोफोबिया तंत्रिका तंत्र बुखार, शरीर में पीड़ा, पानी से भय, मांसपेशियों तथा श्वसन तंत्र में लकवा, बेहोशी, बेचैनी। यह एक घातक रोग है।
खसरा पूरा शरीर बुखार, पीड़ा, पूरे शरीर में खुजली, आँखों में जलन, आँख और नाक से द्रव का बहना
चेचक पूरा शरीर विशेष रूप से चेहरा व हाथ-पैर बुखार, पीड़ा, जलन व बेचैनी, पूरे शरीर में फफोले
पोलियो तंत्रिका तंत्र मांसपेशियों के संकुचन में अवरोध तथा हाथ-पैर में लकवा
हार्पीज त्वचा, श्लष्मकला त्वचा में जलन, बेचैनी, शरीर पर फोड़े
इन्सेफलाइटिस तंत्रिका तंत्र बुखार, बेचैनी, दृष्टि दोष, अनिद्रा, बेहोशी। यह एक घातक रोग है

प्रमुख अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्ये

ग्रन्थि का नाम हार्मोन्स का नाम कार्य
पिट्यूटरी ग्लैंड या पियूष ग्रन्थि सोमैटोट्रॉपिक हार्मोन
थाइरोट्रॉपिक हार्मोन
एडिनोकार्टिको ट्रॉपिक हार्मोन
फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन
ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन
एण्डीड्यूरेटिक हार्मोन
कोशिकाओं की वृद्धि का नियंत्रण करता है।
थायराइड ग्रन्थि के स्राव का नियंत्रण करता है।
एड्रीनल ग्रन्थि के प्रान्तस्थ भाग के स्राव का नियंत्रण करता है।
नर के वृषण में शुक्राणु जनन एवं मादा के अण्डाशय में फॉलिकल की वृद्धि का नियंत्रण करता है।
कॉर्पस ल्यूटियम का निर्माण, वृषण से एस्ट्रोजेन एवं अण्डाशय से प्रोस्टेजन के स्राव हेतु अंतराल कोशिकाओं का उद्दीपन
शरीर में जल संतुलन अर्थात वृक्क द्वारा मूत्र की मात्रा का नियंत्रण करता है।
थायराइड ग्रन्थि थाइरॉक्सिन हार्मोन वृद्धि तथा उपापचय की गति को नियंत्रित करता है।
पैराथायरायड ग्रन्थि पैराथायरड हार्मोन
कैल्शिटोनिन हार्मोन
रक्त में कैल्शियम की कमी होने से यह स्रावित होता है। यह शरीर में कैल्शियम फास्फोरस की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
रक्त में कैल्शियम अधिक होने से यह मुक्त होता है।
एड्रिनल ग्रन्थि
  • कॉर्टेक्स ग्रन्थि
  • मेडुला ग्रन्थि
ग्लूकोर्टिक्वायड हार्मोन
मिनरलोकोर्टिक्वायड्स हार्मोन
एपीनेफ्रीन हार्मोन
नोरएपीनेफ्रीन हार्मोन
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा उपापचय का नियंत्रण करता है।
वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण का पुन: अवशोषण एवं शरीर में जल संतुलन करता है।
ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है।
ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है।
अग्नाशय की लैगरहेंस की इंसुलिन हार्मोन रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।
द्विपिका ग्रन्थि ग्लूकागॉन हार्मोन रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।
अण्डाशय ग्रन्थि एस्ट्रोजेन हार्मोन
प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन
रिलैक्सिन हार्मोन
मादा अंग में परिवद्र्धन को नियंत्रित करता है।
स्तन वृद्धि, गर्भाशय एवं प्रसव में होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है।
प्रसव के समय होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है।
वृषण ग्रन्थि टेस्टेरॉन हार्मोन नर अंग में परिवद्र्धन एवं यौन आचरण को नियंत्रित करता है।
विटामिन की कमी से होने वाले रोग
विटामिन रोग स्रोत
विटामिन ए रतौंधी, सांस की नली में परत पडऩा मक्खन, घी, अण्डा एवं गाजर
विटामिन बी1 बेरी-बेरी दाल खाद्यान्न, अण्डा व खमीर
विटामिन बी2 डर्मेटाइटिस, आँत का अल्सर,जीभ में छाले पडऩा पत्तीदार सब्जियाँ, माँस, दूध, अण्डा
विटामिन बी3 चर्म रोग व मुँह में छाले पड़ जाना खमीर, अण्डा, मांस, बीजवाली सब्जियाँ, हरी सब्जियाँ आदि
विटामिन बी6 चर्म रेग दूध, अंडे की जर्दी, मटन आदि

अन्य बीमारियां

कैंसरः यह रोग कोशिकाओँ के अनियंत्रित विकास और विभाजन के कारण होता है जिसमें कोशिकाओं का गांठ बन जाता है, जिसे नियोप्लाज्म कहते हैं। शरीर के किसी खास हिस्से में असामान्य और लगातार कोशिका विभाजन को ट्यूमर कहा जाता है।

गाउट:  पाँव के जोड़ों में यूरिक अम्ल के कणों के जमा होने से यह रोग होता है| यह यूरिक अम्ल के जन्मजात उपापचय से जुड़ी बीमारी है जो यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के साथ बढ़ जाता है।

हीमोफीलिया को ब्लीडर्स रोग कहते हैं। यह लिंग से संबंधित रोग है| हीमोफीलिया के मरीज में, खून का थक्का बनने की क्षमता बहुत कम होती है।

हीमोफीलिया ए, यह एंटी– हीमोफीलिया ग्लोब्युलिन फैक्टर– VIII की कमी की वजह से होता है। हीमोफीलिया के पांच में से करीब चार मामले इसी प्रकार के होते हैं।

हीमोफीलिया बी या क्रिस्मस डिजीज प्लाज्मा थ्रम्बोप्लास्टिक घटक में दोष के कारण होता है।

हेपेटाइटिसः यह एक विषाणुजनित रोग है जो यकृत को प्रभावित करता है, जिसके कारण  लीवर कैंसर या पीलिया नाम की बीमारी हो जाती है। यह रोग मल द्वारा या मुंह द्वारा फैलता है। बच्चे और युवा व्यस्कों में यह रोग होने की संभावना अधिक होती है और अभी तक इसका कोई टीका नहीं बन पाया है।

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