बौद्ध संगतियां , स्थान , अध्यक्ष व शासनकाल याद करने की ट्रिक
बौद्ध संगतियां , स्थान , अध्यक्ष व शासनकाल याद करने की ट्रिक
नमस्कार दोस्तो , बौद्ध संगतियों (BUDDH SUMMIT) से अक्सर Exam में Question पूछे जाते है , कि कौन सी बौद्ध संगतियों किसके शासनकाल में कहा पर हुई व उसके अध्यक्ष कौन थे ! हम अक्सर इन Fact को याद तो कर लेते है पर जल्दी ही भूल भी जाते है ! या फिर इन Facts को आपस में Mix कर देते है ! तो आज हम आपको इन बौद्ध संगतियों को याद करने की एक ऐसी आसान सी ट्रिक Trick बताऐंगे जिसको याद करने पर आप कभी भी बौद्ध संगतियों से संबंधित Facts नही भूलेंगे .
यदि समान्य ज्ञान को ट्रिक के साथ याद किया जाये तो लम्बे समय तक याद रहती है और यदि भूल भी जाये तो एक बार देखने पर उसी टाइम याद हो जाती है और शोर्ट ट्रिक लगा के समान्य ज्ञान के बहुत से टॉपिक याद किये जा सकते है
क्रम स्थान अध्यक्ष शासनकाल
प्रथम (483 ई.पू) राजगृह(राजा) महाकश्यप(महाराजा) अजातशत्रु(आजा)
द्वितीय(383ई.पू) वैशाली(वैश्य) सबकामी(सबका) कालाशोक(काल)
तृतीय(255 ई.पू) पाटलिपुत्र(पटाओ) मोगलीपुततिस(मत) अशोक(आशिक)
चतुर्थ(1 ईसवी) कुण्डलवन(कुंअर) वसुमित्र जी (जी) कनिष्क(कंगाल)
राजा महाराजा आजा, वैश्या सबका काल है
पटाओ मत आशिक, कुअंर जी कंगाल है
आप इन पंक्तियों के माध्यम से बौद्ध संगतियां , स्थान , अध्यक्ष व शासनकाल को ट्रिक के रूप कर सकते है तो इस प्रकार आप आसानी से बौद्ध संगतियों को याद रख सकते है ! और अब आपका कभी भी, किसी भी Exam में बौद्ध संगतियों से संबंधित कोई भी Question गलत नही होगा
बुद्ध से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बाते :-
- वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को ‘महासांघिक’ और जिन्होंने निकाला था उन्हें ‘हीनसांघिक नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया।
- सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया जिसमें भगवान बुद्ध के वचनों को संकलित किया गया। इस बौद्ध संगीति में पालि तिपिटक (त्रिपिटक) का संकलन हुआ। श्रीलंका में प्रथम शती ई.पू. में पालि तिपिटक को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया था। यही पालि तिपिटक अब सर्वाधिक प्राचीन तिपिटक के रूप में उपलब्ध है
- महायान के सर्वाधिक प्रचीन उपलब्ध ग्रंथ ‘महायान वैपुल्य सूत्र’ है जिसमें प्रज्ञापारमिताएँ और सद्धर्मपुण्डरीक आदि अत्यंत प्राचीन हैं। इसमें ‘शून्यवाद’ का विस्तृत प्रतिपादन है।
- हीनयान का आधार मार्ग आष्टांगिक है। वे जीवन को कष्टमय और क्षणभंगूर मानते हैं। इन कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा क्योंकि आपकी सहायता करने के लिए न कोई ईश्वर है, न.
- न देवी और न ही कोई देवता। बुद्ध की उपासना करना भी हीनयान विरुद्ध कर्म है
- हीनयान कई मतों में विभाजित था। माना जाता है कि इसके कुल अट्ठारह मत थे जिनमें से प्रमुख तीन हैं- थेरवाद (स्थविरवाद), सर्वास्तित्ववाद (वैभाषिक) और सौतांत्रिक।
- महायान ने बुद्ध को ईश्वरतुल्य माना। सभी प्राणी बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं। दुःख है तो बहुत ही सहज तरीके से उनसे छुटकारा पाया जा सकता है। पूजा-पाठ भले ही न करें लेकिन प्रार्थना में शक्ति है और सामूहिक रूप से की गई प्रार्थना से कष्ट दूर होते हैं।
- महायानियों ने ही संसारभर में बुद्ध की मूर्ति और प्रार्थना के लिए स्तूपों का निर्माण किया महायान भी कई मतों में विभाजित है। महायान अष्वघोष के ग्रंथों और नागार्जुन के माध्यमिक और असंग के योगाचार्य के रूप में महायान के विकसित रूप की स्थापना हुई।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्धधर्म दो भागो हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया।
- धार्मिक जुलुस का प्रारम्भ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारम्भ किया गया। बौद्धों का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसका महत्त्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।
- बौद्धधर्म के त्रिरत्न है- बुद्ध, धम्म एवं संघ।
- ‘विश्व दुखों से भरा है’ का सिद्धांत बुद्ध ने उपनिषद् से लिया है।
- बौद्धधर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान “पाली त्रिपिटक” प्राप्त होता है।
- बौद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। इन्हे एशिया का ज्योति पुञ्ज (LIGHT OF ASIA) कहा जाता है। इनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था, इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
- इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे। माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवे दिन हो गयी थी। इनका लालन-पालन इनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया।
- बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पाली में दिए थे।
- इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे- बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन।
- एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषो को आठ भागों में बाँटकर उन पर आठ स्तूपो का निर्माण कराया गया।
- (उन आठ स्तूपो में से एक साँची का स्तूप,मध्य प्रदेश है।)
इस पोस्ट में आपको बौद्ध संगतियां , स्थान , अध्यक्ष व शासनकाल याद करने की ट्रिक द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन 5वीं बौद्ध संगीति प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किसके शासनकाल में हुआ था बौद्ध संगीति trick पंचम बौद्ध संगीति कश्मीर में चौथी बौद्ध सभा का आयोजन किसने करवाया बौद्ध संगीति ट्रिक दूसरी बौद्ध परिषद के शासनकाल के दौरान आयोजित की गई थी से संबंधित जानकारी दी गई है. यहां पर दिए गए महत्वपूर्ण Questions पहले परीक्षाओं में पूछे जा चुके हैं और आगे आने वाली परीक्षाओं में भी इनमें से काफी प्रश्न पूछे जा सकते हैं. तो इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें. अगर इनके बारे में आपका कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके पूछो और अगर आपको यह टेस्ट फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें.