कैपेसिटर क्या है कैपेसिटर कैसे काम करता है
कैपेसिटर क्या है कैपेसिटर कैसे काम करता है
कैपेसिटर (Capacitor)- यह वह उपकरण है जिसके द्वारा विद्युत उर्जा को एकत्रित या स्टोर (store) किया जा सकता है उसे कैपेसिटर कहते हैं। जब किन्हीं दो चालकों को किसी डाइइलैक्ट्रिक इन्सुलेटिंग पदार्थ द्वारा अलग करके, इलैक्ट्रिक फील्ड स्थापित किया जाता है तो उसमें विद्युत उर्जा एकत्रित हो जाती है और आवश्यकतानुसार इस एकत्रित उर्जा को प्रयोग किया जा सकता है। इस युक्ति (device) को कैपेसिटर कहते हैं.
इसमें मुख्य रूप से चालक और इन्सुलेटिंग पदार्थ होते हैं। यह चालक टिन, एल्युमिनियम आदि धातु होती है। इन्सुलेटिंग पदार्थ माइका, एबोनाइट, वायु आदि होता है। दोनों प्लेटें एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं जिनके मध्य में इन्सुलेटिंग पदार्थ लगाया जाता है। इस इन्सुलेटिंग पदार्थ के कारण दोनों चालक या प्लेटें एक-दूसरे से मिल नहीं पाती हैं। दोनों के सिरों से टर्मीनल निकाले जाते हैं। नीचे फोटो में दो प्लेंटें समानान्तर में लगी दिखाई गई हैं जिसमें एक स्विच और बैट्री भी लगी है। बैट्री का पॉजिटिव सिरा एक प्लेट A से और दूसरा सिरा दूसरी प्लेट B से लगा होता है।
जब स्विच को ऑन (on) किया जाएगा तो करंट पॉजिटिव (+ve) से नैगेटिव (-ve) की ओर चलना शुरू कर देगा। इस प्रकार प्लेंट A में से कुछ इलैक्ट्रानस निकलकर इसे धन चार्जित करेगें तथा प्लेट B की ओर कुछ इलैक्ट्रानस जाकर इसे ऋण चार्जित करेंगें। जब | दोनों प्लेटें चार्ज हो जाएगी तो बैट्री स्विच को बंद (off) कर देने पर भी इनमें चार्ज बना रहेगा। अब यदि कैपेसिटर के दोनों सिरों को अपास में मिला दिया जाए तो एक स्पार्क (चिगाँरी) उत्पन्न होगी, यह स्पार्क (चिगरी) एकत्रित की हुई विद्युत उर्जा को दर्शाता है। जिसे आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है।
कैपेसिटर के चालक प्लेटों के रूप में एल्युमीनियम, ताबाँ तथा टिन आदि की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। तथा डाइइलैक्ट्रिक इन्सुलेटिंग पदार्थ के रूप में कागज, अभ्रक, सिरामिक तथा मोम आदि का प्रयोग किया जाता है।
कैपेसिटेंस (Capacitance)
किसी कन्डेसर या कैपेसिटर के विद्युत चार्ज के संग्रहण करने के गुण को कैपेसिटेंस कहते हैं। विभव (potential) को इकाई तक बढ़ाने के लिये आवश्यक चार्ज के रूप में इसे परिभाषित किया जाता है। जब Q कृलॉम्ब का एक चार्ज किसी कन्डक्टर को दिया जाता है और यदि इसका विभव 0 से V वोल्ट तक बढ़ा दिया जाता है, तब कन्डक्टर के कैपेसिटेंस को C =Q/v द्वारा प्रकट किया जाता है। एस.आई. प्रणाली में कैपेसिटेंस को फैराड (farad) में मापते हैं। यदि कन्डक्टर के विभत को एक वोल्ट तक बढ़ाने के लिये एक कूलॉम्ब चार्ज की आवश्यकता है, तब कन्डक्टर को एक फैराड की क्षमता का कहा जाता है। कैपेसिटेंस की यह इकाई बहुत बड़ी है, अत: माइक्रो फैराड तथा माइक्रो-माइक्रो फैराड को सामान्यत: प्रयोग करते हैं।
μF = 10-6 फैराड
|μμF= 1 पीको फैराड = 10-12 फैराड
कैपेसिटर्स के प्रकार
स्थिर-मान कैपेसिटर (Fixed Capacitor) : जिस कैपेसिटर का कैपेसिटेंस मान नियत रहता है वह स्थिर-मान कैपेसिटर कहलाता है। इसमें प्रयुक्त डाइलैक्ट्रिक के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं.
1. पेपर कैपेसिटर (Paper Capacitor)
2.माइका कैपेसिटर (Mica Capacitor)
3.इलैक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर (Electrolytic Capacitor)
4.सैरामिक कैपेसिटर (Ceramic Capacitor)
स्थिर-मान कैपेसिटर (Variable capacitor) :-जिस कैपेसिटर का कैपेसिटेंस मान, एक पूर्व निर्धारित मान सीमा में परिवर्तित किया जा सकता है, वह अस्थिर-मान कैपेसिटर कहलाता है। इसमें एल्युमिनियम से बनी प्लेट्स के दो समूह होते हैं। जो ‘रोटर’ एवं ‘स्टेटर’ कहलाते हैं। प्लेट्स के बीच वायु, डाइलैक्ट्रिक का कार्य करती है। जब रोटर-प्लेट्स, स्टेटर-प्लेट्स के द्वारा पूरी तरह ढक जाती है तो कैपेसिटेंस का मान अधिकतम होता है। इसके विपरीत, जब रोटर-प्लेट्स, स्टेटर-प्लेट्स से पूरी तरह बाहर होती है तो कैपेसिटेंस का मान न्यूनतम होता है।
कैपेसिटरों को जोड़ना
Connecting of Capacitors :- कैपेसिटरों को तीन प्रकार से जोड़ा जा सकता है।
1.कैपेसिटर सीरिज में :- जब दो या दो से अधिक कैपेसिटरों को सीधे ही सिरे से सिरे जोड़ते। चले जाए तो इस प्रकार का कनैक्शन सीरिज कनैक्शन कहलाता है। सीरिज कनैक्शन में सभी जुड़े हुए कैपेसिटरों का चार्ज एक समान होता है परन्तु इनकी वोल्टेज अलग – अलग होती है।
2.कैपेसिटर पैरेलल में :- जब दो या दो से अधिक कैपेसिटरों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि सभी कैपेसिटरों का एक सिरा एक बिन्दु पर और सभी कैपेसिटरों का दूसरा सिरा दूसरे बिन्दु पर जोड़ा जाए तो इस प्रकार के जुड़े हुए कनैक्शन को पैरेलल कनैक्शन कहा जाता है।
जब कैपेसिटर समानांतर जुड़े होते हैं तो इनका कैप्सटेंस आपस में जुड़ जाता है जिस का फार्मूला आपको नीचे दिखाया गया है.
C Total = C1 + C2+………….. +Cn
3.सीरिज़- पैरेलल में :- जब कैपेसिटरों को एक ही सर्किट में सीरिज और पैरेलल दोनों कनैक्शनों में जोड़ा जाए तो इस प्रकार का कनेक्शन को सीरिज-पैरेलल कनैक्शन कहा जाता है इस प्रकार के सर्किटों का कुल कैपेसिटेंस ज्ञात करने के लिए दोनों विधियों का प्रयोग किया जाता है।
कैपेसिटर की चार्जिग (Charging) :- जब कोई कैपेसिटर सप्लाई के साथ जुड़कर करंट लेता है तो इसे चार्जिग कहते हैं जिससे कैपेसिटर में उर्जा एकत्रित | हो जाती है। इस विधि से कैपेसिटर चार्ज हो जाता है।
कैपेसिटर की डिस्चार्जिग (Discharging) :- जब किसी चार्ज कैपेसिटर को किसी लोड़ के साथ जोड़ा जाता है तो वह एकत्रित उर्जा को खर्च कर देता है। इस विधि को कैपेस्टिर की डिसचार्जिग कहते हैं। डिस्चार्जिग होते समय इलैक्ट्रानस नैगेटिव (-ve) से पॉजिटिव (+ve) की ओर बहते हैं तथा कैपेसिटर की एकत्रित उर्जा खत्म हो जाती है।
कैपेसिटरों का प्रयोग
1.फ्लोरोसेंट ट्यूब तथा डिस्चार्ज लैम्पः- इस प्रकार के लैम्पों में चोक लगाने के कारण पावर – फैक्टर बहुत कम हो जाता है जोकि 0.3 से 0.5 तक लैगिंग करता है पावर फैक्टर को बढ़ाने के लिए कैपेसिटर को पैरेलल में लगाया जाता है तथा कैपेसिटर के लगाने से स्ट्रोबोस्कोपिक प्रभाव भी कुछ कम होता
है।
2.सिंगल फेज़ मोटर में :- सिंगल फेज मोटर में कैपेसिटर का प्रयोग एक फेज को दो भागों में बाँटने के लिए किया जाता है। जिससे सिंगल फेज मोटर स्टार्ट होती है, जैसे छत या टेबल आँखों में।
3.सप्लाई लाइनों के पैरेलल में:- अलग- अलग तरह का लोड़ लगा होने के कारण ए. सी. में लीडिंग करंट रहता है इसके पावर फैक्टर को बढ़ाने के लिए सप्लाई लाइनों के पैरेलल में कैपेसिटर का प्रयोग किया जाता है।
4.पैट्रोल गाड़ियों में :- पैट्रोल वाली गाड़ियों के डिस्ट्रीब्यूटर में चिगाँरी (Sparking) को कम करने के लिए कैपेसिटर का प्रयोग किया जाता है। जैसे, कार, बस तथा टूक इत्यादि।
5.इन्डक्टिव सर्किट में :- सभी प्रकार के इन्डक्टिव सर्किट में पावर फैक्टर काफी कम होता है जिसे बढ़ाने के लिए कैपेसिटर का प्रयोग किया जाता है।
इस पोस्ट में आपको कैपेसिटर बैंक क्या है कैपेसिटर कैसे काम करता है कैपेसिटर कैसे चेक करे कैपेसिटर के प्रकार कंडेंसर क्या है कैपेसिटर का मात्रक कैपेसिटर fan संधारित्र सूत्र से संबधित जानकारी दी गयी .अगर इसके बारे में कोई भी सवाल या सुझाव होतो नीचे कमेंट करके पूछे.