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कारक किसे कहते हैं कारक के भेद

कारक किसे कहते हैं कारक के भेद

कारक की परिभाषा :- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसके संबंध का वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसको कारक कहते हैं यह संबंध-ज्ञान कभी तो पृथक शब्द के रूप में या चिह्नों के रूप में होता है तथा कभी यह मूल शब्द में घुला-मिला रहता है। कभी मूल शब्द में केवल कुछ विकार हो जाता है तथा परसर्ग के रूप में भी जुड़ा रहता है।

कारकों का रूप प्रकट करने के लिए उनके साथ जो शब्द-चिह्न लगे रहते हैं, उन्हें विभक्ति कहते हैं। इन कारक-चिह्नों को परसर्ग भी कहते हैं।कारक सहित शब्द के दो रूप होते हैं-मूल रूप एवं विकारी रूप। शब्द के इन दोनों रूपों में कभी विभक्ति का प्रयोग होता है और कभी नहीं होता; जैसे

  1. मोहन पुस्तक पढ़ता है।         (मोहन कर्ता, पुस्तक कर्म, दोनों विकार रहित)
  2. मोहन ने पुस्तक को फेंक दिया। (मोहन कर्ता, पुस्तक कर्म, दोनों के साथ परसर्ग चिह्न ‘ने’, और ‘को’) ।
  3. बालकों से पुस्तक ले लो।     (बालक कर्तामें विकार और परसर्ग दोनों परंतु पुस्तक विकार रहित)

कारक के भेद

हिंदी में आठ कारक हैं। इनके नाम और चिह्न इस प्रकार हैं

कारक          →   चिह्न (विभक्ति )
1. कर्ता          →  ने
2.कर्म           →  को
3.करण         →  से, द्वारा
4.संप्रदान       →  को, के लिए
5.अपादान      →  से
6.संबंध           →  का, के, की
7.अधिकरण    →   में, पर
8.संबोधन        →   हे, अरे, ओ, ऐ।

1. कर्ता – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कहा जाता है
जैसे –

1.मोहन पुस्तक पढ़ता है।
2.सोहन ने दूध पिया।

2. कर्म – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता हो, उसे कर्मकारक कहते हैं।
जैसे

1.राम ने रावण को मारा।
2. माता जी बालक को समझाती हैं।

3. करण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से कर्ता के काम करने के साधन का बोध हो, उसे करण कहा जाता है.
जैसे – राम ने बाण से बालि को मारा।

4. संप्रदान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के लिए क्रिया की जाए, उसे संप्रदान कहा जाता है.
जैसे-अध्यापक विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें लाया।

5. अपादान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्ता, आरंभ, भिन्नता का बोध होता हो, अपादान कारक कहलाता है.
जैसे-वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।

6. संबंध – संज्ञा या सर्वनाम का जो रूप एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ संबंध प्रकट करे, उसे संबंध कारक कहते हैं.
जैसे-यह मोहन का घर है।

7. अधिकरण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। जैसे-वीर सैनिक युद्धभूमि में मारा गया।

8. संबोधन – संज्ञा का जो रूप चेतावनी या किसी को पुकारने का सूचक है।
जैसे- हे ईश्वर ! हमारी रक्षा करो।

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